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________________ आचा० ॥७९५ ॥ सूत्रम् . राखे, आ भक्त प्रत्याख्यान मरणथी मोक्षमां जाय, अथवा देवलोकमां जाय. भक्त परिज्ञा कहीने हवे इंगित मरण अडवा श्लोकथी कहे छे. प्रकर्षथी ग्रहित माटे प्रकर्ष ग्रहि छे, अने ते प्रकर्षथी लीधाथी मग्रहित तर छे. [अनेक, प्रत्यय लागत्राथी] प्रग्रहित तरक छे. हवे इंगित मरण कहे छे कारण के आ भक्त प्रत्याख्यानना नियमथीज चार आइरनुं प्रत्याख्यान छे तथा इंगित प्रदेशमां संथारानी जग्यामांज बिहार लेवाथी विशिष्टतर घृति संहनन विगेरेथी युक्त होय, ४ ॥ ७९५॥ तेज प्रकर्षथी ले छे, प्र० - आ कोने होय छे ? द्रव्य (संयम जेने होय ते द्रविक छे, अने ते गीतार्थनेज छे, अने ते जघन्यथी पण नत्र पूर्वनुं ज्ञान होय तेवाने छे. बीजाने नथी, अहीं इंगित मरणमां पण संलेखनामां कहेल तृण संथारो विगेरे समजवुं. (११) आ अपर विधि छे ? ते कहे छे. आ उपर बतावेलो विधि भक्त परिज्ञाथी जुदो इगित मरणनो विधि विशेष प्रकारे वीर वर्द्धमान स्वामीए सम्यक् प्रकारे प्राप्त कर्यो छे, आ बने जोडे कहेवाथी अने प्रत्यक्ष समान कहेवाथी ( इदं) 'आ' विशेषण मुक्युं छे, आ इङ्गित मरणमां पण मत्रज्या विगेरेनो विवि कहेवो, संलेखना पूर्व माफक जाणवी, तेज प्रमाणे उपकरण विगेरे त्यजीने संथारानी जंग्या बरोबर देखीने आलोचना करी पापथी पाछो हटीने पंच महाव्रत फरी उचरीने चार आहारनुं प्रत्याख्यान करीने संथारामां बेसे, अहीं आटलं विशेष छे. आत्माने छोडे एटले अंग संबन्धी वेपार विशेष अनुमोद विगेरे बधु आत्म वेपार शिवायनुं त्यागे प्रकारे त्यजे. त्रिविधि त्रिविधि ते त्रण मन वचन कायाथी करवु कराव जरुर पडतां पासु फेरववुं पडे हालवु पढे अथवा पेशाब विगेरे करवो होय
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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