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________________ आचा० सूत्रम् १७९४॥5 ॥७९॥ संसप्पगा य जे पाणा, जेय उडुमहाचरा । भुञ्जन्ति मंससोणियं न छणे न पमजए ॥९॥ पाणा देहं विहिंसन्ति,ठाणाओनवि उब्भमे ॥ आसवेहिं विवित्तेहि, तिप्पमाणोऽहियासए ॥१०॥ गन्थेहिं विवित्तेहिं, आउकालस्स पारए ॥ पग्गहिय तरगं चेयं, दवियस्स वियाणओ ॥११॥ अयंसे अवरे धम्मे, नायपुत्तेण साहिए ॥ आयवज पडीयारं; विजहिज्जा तिहा तिहा ॥१२॥ संसर्पन करे, ते कीडी क्रोष्ट्र (शियाळ) विगेरे जे पाणीओ छे, तथा उंचे उडनार गीध विगेरे छे, तथा बीलमां नीचे रहेनारा साप विगेरे छे, तथा सिंह वाघ विगेरे आवीने मांस भक्षण करे, तथा डांस मच्छर विगेरे लोही पीए, ते समये ते जीवोने आहार 8 अर्थ आवेला जाणीने अवंति सुकुमार माफक तेमने हणे नहीं. तेम रजोहरण विगेरेथी उडाडीने खावामां अंतराय न करे (९) ₹ वळी आवेलां प्राणीओ मारी कायाने हणशे, पण मारां ज्ञानदर्शन चारित्रने नहीं हणे, तेम विचारी कायानो मोह छोडेल होवाथी तेने खातां अन्तरायना भयथी पोते न रोके, अने ते स्थानथी पोते भयना कारणे बीजे खसे नहि. १०-केवो बनीने ? उ०-प्राणातिपात विगेरे पांच आश्रवो अथवा विषय कषाय विगेरेथी दूर रहीने शुभ अध्यवसाय वाळो बनीने डांस मच्छर विगेरेथी लोही पीवातो पण अमृत विगेरेथी सिंचन थवा माफक तेओनी करेली पीडाने पोते तप्या छतां पण सहन करे; (१०) है. वळी बाह्य अभ्यंतर ग्रंथ तथा शरीरना प्रेम विगेरेथी पोते दूर रही तथा अंग उपांग विगेरे जैन आगमथी आत्माने भावतो शुक्ल ध्यान ने धर्म ध्यानमा रक्त वनी मृत्यु कालनो पारगामी बने एटले ज्यां सुधी छेवटना श्वासोश्वास होय त्यां मुधी तेवी समाधि
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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