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________________ आचा० ॥७४१॥ हवे समाप्त करे छे – ए प्रमाणे उपर बतावेली नीतिए ते वधां एकांत वादीओनो धर्म. तेंओए योग्य रीते कह्यो नथी, तेम शास्त्र प्रणयनवडे सारी रीते प्रज्ञापित पण नथी, प्र ० - पोतानी बुद्धिए तमे आ केम कहो छो ? उ०- नहीं, अथवा वादी पूछे छे के जो ते वादीओनो एकांत पक्ष बरोबर' कहेलो नथी, तो केवो धर्म सुप्रज्ञापित थाय छे. तेथी जैनाचार्य ( गणधरो ) सूत्र कहे छे: से जहेयं भगवया पवेइयं आसुपनेण जाणया पासया अदुवा गुप्ती वओगोयरस्स तिबेमिवत्थ समयं पावं, तमेव उवाइकम्म एस महं विवेगे वियाहिए, गामेवा अदुवा रपणे नेव गामे नेव रपणे धम्ममोयाणह पवेइयं माहणेण मइमया, जामा तिन्नि उदाहिया जेसु इमे आयरिया बुझ माणासहिया, जे निव्वुया, पावेहिं कम्मेहिं अणियाणा ते वियाहिया (सू० २००) वस्तुनु आ स्याद्वादरूप लक्षण वधा व्यवहारने अनुसरनारुं कोइपण वखत न हणानारुं ( सर्वत्र जय पामेलुं) भगवान महावीरे कहेलुं छे अथवा हवे पछीनु कद्देवानुं पण महावीर प्रभुए क छे. ते केवा छे उ० – केवलज्ञान होवाथी तेओ आशुमज्ञावाळा छे अर्थात् तेओ सदा उपयोगबाळा छे. प्र० – बन्ने उपयोग साथै छे के ? उ० – नहीं, कारण के ज्ञान उपयोगथी जाणता, तथा दर्शन उपयोगथी देखता महावीर प्रभुए कह्या छे. तेवो धर्म एकांतवादीओए कह्यो नथी. अथवा गुप्ति ते वाचानी छे. एटले भाषा समिति जाणवी ते भगवान महावीरे का के दरेके भाषा सूत्रम् ॥७४१॥
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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