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________________ ४ प्रमाणे एकांतथीज लोक अस्तित्व मानतां हेतुनो अभाव बताव्यो, एज प्रमाणे नास्तित्वनी प्रतिज्ञामां पण समजवं, ते वतावे छे, कोइ8 आचालन एम कहे के " लोक नथी" आq वोलनारने पूछ, के तमे छो के नहि ? अने जो तमे छो तो लोकमां के लोक बहार जो लोकमां सत्रम - हो, तो लोक नथी एवं केम बोलो छो ? अने लोक बहार एम बोलशो तो खर, विषाण (गधेडातुं शींगडा) माफक असत्य सिद्ध ॥७४०॥ 5थया, तेथी मारे कोने उत्तर आपवो ? आ प्रमाणे दरेक विद्वाने पोतानी मेळे विचारीने एकांत वादीओनुं समाधान करवु. ॥७४०॥ एवं'-जेम अस्तित्व नास्तित्व वाद तेमने मानेलो आकस्मिक नियुक्तिक (युक्ति विनानो) छे, एज प्रमाणे ध्रुव अध्रुव विगेरे वादो पण नियुक्तिज छे, पण अमारा जैन स्यावाद वादीना जैनमतमां कथंचित् (कोइ अंशे) ना स्वीकारथी उपर बतावेला दोषनो Bा प्रसंग नथी, कारण के स्वपर सत्ताना उपादान व्युदासथी वस्तुनुं वस्तुपणुं उपाय छे, एथी व द्रव्य क्षेत्र काळ स्वभावथी वस्तुनु अस्तिपणुं छे, अने परद्रव्य क्षेत्र काळ स्वभावथी नास्तिपणुं छे, कां छे केः सदेव सर्व को नेच्छेत, स्वरूपादिचतुष्टयात् । असदेव विपर्यासान् न चेन्न व्यवतिष्ठते ॥१॥ स्वरूप विगेरे चार (द्रव्य क्षेत्र काळ भाव) थी वधा पदार्थोने सत् तरीके कोण न इच्छे ? अने तेथी उलटुं ते बीजाना द्रव्यादि चष्टतुयथी पोते असत् छे, जो तेम न मानीए तो वस्तुनी व्यवस्था रहे नहि. विगेरे जाणवं, कारण के सूत्रना संबंधना लीधे आ से प्रयास थोडमां समजाववा माटे कहेल छे, माटे वधारे कहेता नथी, ए प्रमाणे ध्रुव अध्रुव विगेरेमां पण पांच अवयव अथवा दश अवयव अथवा विजी रीते एकांत पक्ष साथे स्याद्वाद पक्ष सरखावी विचारीने योजवो. (आ पांच अवयव अने दश अवयवर्नु स्वरुप दशवकालिक प्रथम अध्ययनमां हरिभद्रमरि महाराजनी टीकमां बतावेल छे. गलव- बलवान
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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