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आचा०
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( माळवो ) विगेरे छे, ते देशो साधुने विहार योग्य २५ देश छे ( ते आर्य देश छे बाकीना ३१९७४ अनार्य छे. ) नीचे टीप - मां वीजा सूत्रनो पाठ मुक्यो छे.
समये साधुओने विचरवा योग्य क्षेत्रनी बन्धायली हद नीचे प्रमाणे हती.
पूर्व दिशामा साधु साध्वीने मगध देश सुधी विचरखुं कल्पे, दक्षिणमां कोशंबी, पश्चिममां थुणा देश सुधी अने उत्तरमां जाब कुणाला देश आर्य क्षेत्र छे, तेनी बहार जनुं साधु साध्वीने न कल्पे, उपर बतावेल हदमां आर्य भूमिमां २५ || देश छे, ते जिनेश्वरे धर्म क्षेत्र तरिके वर्णव्या छे.
ते देशोनी वचमांना भागमां साधु विचरे, अथवा गाम नगरना अंतराले अथवा गाम देशना वचमां तेज प्रमाणे नगर देशना वचमां अथवा उद्यानमां अथवा तेना आंतरे विचरतां अथवा जतां भवतां अथवा ते भिक्षुने गाम विगेरेमां रहेतां कायोत्सर्ग विगेरे करतां केटलाक पापरूप काळाशथी मलिन अंतःकरणवाळा जे माणसो लूपक (हिंसक ) होय ते साधुने दु:ख दे छे. (चार गतिमां भमता जीवोमां ) साधुने नारकी दुःख देवाने अशक्त छे. तिर्येच अने देवतानो उपसर्ग कोइकज वार थाय; तेथी मनुष्योथीजाये साधु ने उपसर्ग थाय छे. माटे, जन [ माणस ] शब्द लीधो छे. अथवा, जेओ जन्मे; ते जन छे, अने तेथी जन शब्दनो अर्थ
*'पुरच्छिभेणं कप्पइ निग्गंधाण वा निग्गंधीण वा जाव मगहाओ एत्तर, दक्खिणेणं कप्पर निग्गंथीण वा निग्गंथीण वा जाव कोसंबीओ एत्त, पच्छिमेणं जाव धूणाविसभ उत्तरेणं जाव कुणालाविसभो, ताब आरिए खित्ते, नो कप्पद तो ब अस्यां च आर्यभूमिकायां सार्धपञ्चविंशतिर्जनपदा धर्मक्षेत्राण्यर्हद्भिरुक्तानि ||
सूत्रम
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