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________________ आचा० ॥७०३ ॥ कातर बने छे, अथवा विषयना रसीआ कातर (वीकण) बने छे. प्र० -- तेओ कोण छे ? अने शुं करे छे ? उ० – तेओ ढीला मनवाळा बनीने व्रतोना विध्वंसक बने छे, आवुं अढार हजार शीलांगवाळु ब्रह्मचर्य कोण धारी शके ! आवुं विचारीने द्रव्य लिंग अथवा भावलिंग त्यजीने जीवोना विराधक बने छे, ते लिंग त्यजेलानुं पछी शुं थाय छे ते कहे छे. (अथनो अर्थ पछी छे) केटलाक व्रत लइने भांगी नांखे छे, तेमने (पापना उदयथी) वखते अंतर्मुहुर्त्तमांज मरण आवे छे, केटलाकनी पापरूप निंदा थाय छे, पोताना साधु के वीजा साधुओमां तेनी अपकीर्ति थाय छे, ते कहे छे, ते आ पतित साधु मसाणना लाकडा जेवो भोगनो अभिलाषी दीक्षा ले छे, अने मुकी दे छे माटे तेनो विश्वास न करवो कारण के तेने अकर्त्तव्यनुं भान नथी ? कहां छे केः परेलोक विरुद्धानि, कुर्वाणं दूरतस्त्यजेत् ॥ आत्मानं यो न सघत्ते, सोऽन्यस्मै स्यात् कथं हितः ॥ १ ॥ जे परलोक विरुद्ध अकृत्य करे छे, तेने दूरथी त्यजवो, जे आत्माने चारित्रमां स्थिर नथी राखतो, ते वीजाने हितकारक केवी ते थाय ? विगेरे समजबु. अथवा सूत्र वडेज तेनी अश्लाघा बताववा कहे छे, ते आ साधु वनीने विविध रीते भमतो साधुपणाथी भ्रष्ट थयेलो छे. वीप्सा वडे अत्यंत जुगुप्सा ( निंदा) बतावे छे. वळी, (गुरु शिष्यने कहे छे.) तमे जुओ, कर्मनी प्रवळता केवी छे ? के, जेमनुं नशीब फुटेलुं छे, तेवा उद्युतविहारी (उत्तम साधु) साथै रहेवा छतां पण, हजु तेओ शिथिल विहार बनी रह्या छे, तथा संयम अ| नुष्ठान वढे विनयशील बनेला साथे रहीने तेओ निर्दय बनेला पाप अनुष्ठान करनारा छे, तथा विरत साथै अविरत, द्रव्य, भूत साथे सूत्रम् ॥७०३ ॥
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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