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________________ आचा० ॥६६९॥ GRESS43SHREGIOSEKSE उपर बतावेला चडता परिणामवाळा साधुए चारित्र लीधापछी विशुद्ध परिणामथी तेमनो मोक्ष जलदी थवानो होवाथी श्रुतचारित्ररुप-धर्म पामीने वस्त्र-पात्र विगेरे धर्मोपकरण स्वीकारीने धर्मकरणमां समाधिाळा बनी परिषद सहन करीने सर्वज्ञ-प्रभुए है। सूत्रम् कहेला धर्मने पाळे छे, अने पूर्व बतावेलां प्रमादनां सूत्रो अप्रमादना अभिप्राय प्रमाणे कहेवां(अर्थात् ते दरेक प्रकारे चारित्र निर्मळ 8॥६६९॥ पाळी ज्ञान भणीने सम्यक्त्वमा दृढ थइ अशुभकर्मने क्षय करी नाखे छे.) कहां छे केःयत्र प्रमादेन तिरोऽप्रमादः, स्याद्वाऽपि यत्नेन पुनः प्रमादः। विपर्ययेणापि पठंति तत्र, सूत्राण्यधीकारवशाद् विधिज्ञाः ॥ १॥ ज्यां प्रमादवडे सूत्र कहेवायां होयः त्यां विरोधि अप्रमाद होवाथी अप्रमादना वर्णननां सूत्रो अधिकारना वशथी विधिने जाण| नारा विपर्ययवडे भणे छे (कहे छे.) अथवा, अप्रमादनां कही ते यत्नवडे पाछां प्रमादनां (मत्रों) कहे छे:-ते उत्तम साधुओ वळी केवा थइने धर्म आचरे छे? ते कहे छे:-कामभोगोमां अथवा मातपिता विगेरे लोकमां मोह न करनारा, अने धर्मचारित्रमा एटले | तपसंयम विगेरेमां दृढता राखनारा धर्म आचरे छे. वळी, बधा प्रकारनी भोगाकांक्षाने ज्ञ-परिज्ञावडे दुःखरुप जाणीने प्रत्याख्यान परिज्ञावडे त्यागे छे, ते भोगाकांक्षा त्यागवाथी जे गुणो थाय; ते कहे छे:--'एप' ए काम पिपासानो त्यागनारो प्रकर्षथी नमेलो H'प्रह' प्रणमेलो संयममां, अथवा कर्म धोवामां (लीन थयेलो) महामुनि बने छे, पण तेवा गुणथी रहित होय; ते महामुनि वनतो नथी, 'किंच' वळी, सर्व प्रकारे पुत्रकलत्रादिनो संवध, अथवा विषयाभिलाषनो मोह उल्लंघी (त्यागीने) शुं भावना भावे? ते कहे छे-"आ संसारमा पडतां मारु अवलंबन (आधारभूत) थाय तेवू कंइपण नथी; अने तेना अभावथी उपर प्रमाणे हुँ संसार-उद करवववववनर Hd Vखनारा धर्म आचरे छे. वळाय, ते कहे छ। 'एप' ए कामायणा रहित होय; ते महामानव
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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