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________________ ORIGAM सूत्रम् ॥२६॥ अनंत भेदथी भिन्न कर्म द्रव्यनी वर्गणाओ छे, अने अहीं तेमनुं प्रयोजन छे. कारण के द्रव्य कर्मना व्याख्याननी अहीं वात चाले चा० * छे, अने हवे पछीनी वर्गणाओ क्रमे आवेली छे, ते शिष्यना उपर उपकारनी बुद्धिथी कहेवाय छे. र वली उत्कृष्ट कर्मवर्गणा उपर एक रुप नाखवाथी जघन्य उत्कृष्ट भेदथी भिन्न धृव वर्गणा छे, ते जघन्यथी उत्कृष्टी सर्व जी२६॥ वोथी अनंत गुणी छे, तेना उपर एक रुप नाखवाथी क्रमवढे अनंतीज जघन्य उत्कृष्ट भेदवाली अध्रुव वर्गणा छे. अध्रुव पणाथी अध्रुव छे, कारण के तेना विरुद्ध पक्षवाली धृवना सदभावथी तेनुं अधृवपणुं छे. अहीं जघन्य उत्कृष्टनो भेद हमणा उपर कहेलो तेज छे-ते उत्कृष्टना उपर एक एकनी वृद्धि करतां जघन्य उत्कृष्ट भेदवाळी अनंतीज शून्य वर्गणाओ थाय छे, ४ अने जघन्य उत्कृष्टनो विशेष पूर्व माफक छे. तेओनो संसारमा पण अभाव छे, तेथी तेनुं नाम शून्यवर्गणा राख्यु छे. तेमां एम 9 का छे केः-अध्रुववर्गणाना उपर प्रदेशनी वृद्धिए अनंतीनो पण संभव थतो नथी. एवी प्रथम शून्यवर्गणा छे. तेना उपर एकरुप विगेरेनी वृद्धिए जघन्य उत्कृष्ट भेदवाळी प्रत्येक शरीरनी वर्गणा थायछे. जघन्यथी क्षेत्रपल्योपमना असंख्येय भागना प्रदेश जेटला गुणी उत्कृष्ट छे, तेना उपर एक एकरुपनी वृद्धिए जघन्य उत्कृष्ट भेदवाळी अनंतीज शुन्य वर्गणाओ थाय छे. जघन्य वर्गणाथी उत्कृष्टी असंख्य भाग प्रदेशगुणी छे, तेनो असंख्येय भाग पण असंख्येय लोकाकाशरूप छे. आ प्रमाणे बीजी शून्यवर्गणा छे, तेना उपर एकरूपादि वृद्धिए बादर निगोद शरीरनी वर्गणा जघन्यथी छे, अने क्षेत्र पल्योपमना असंख्येय भाग प्रदेशगुणी उत्कृष्टी छे, तेना उपर एकरूप विगेरेनी वृद्धिथी जघन्य उत्कृष्ट भेदवाळीत्रीजी शून्यवर्गणा छे. जघन्यथी असंख्येय गुणी उत्कृष्टी छे. XRASHISHERS
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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