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________________ CREASE सूत्रम ॥६४४॥ * * पण जेम-बौद्धमतमां भींत विगेरेमांथी पण धर्मोपदेश प्रकट थाय छे. 'तेम जैनधर्ममां नथी; अथवा जेम, वैशेषिकोर्नु उलुक आचा० भाववडे पदार्थोनुं बताववापणुं छे, एवं अमारुं (जैनशासन) नथी. प्र०-शा माटे ? उ०-घातिकर्म क्षय थया पछी, केवळ ज्ञान उत्पन्न थवाथी मनुष्यपणामां रहेलाज (तीर्थकर) पोते कृतार्थ । Dथया छतांपण, जीवोना हितने माटे मनष्य अने देवोनी सभामां धर्मनो उएदेश करे छे. प्र०-तीर्थङ्करज धर्म कहे छे, के, बीजो पण कहे छे ? उ०-बीजो पण कहे छे. जेने विशिष्टज्ञान होय, अने सारीरीते पदार्थोनो परिच्छेदक होय; ते धर्मोपदेश करे छे. ते कहे छे: जेओ अतींद्रियज्ञानि छे, अथवा श्रुत केवळी छे, तेओ धर्म कहे छे. एवं शस्त्रपरिज्ञा नामना १ला अध्ययनमा कहेल छे. (तेथी। आ प्रत्यक्ष भूचक-विशेषणवडे मूचव्यु के,) ते विशिष्टज्ञानीए आ एकेन्द्रिय विगेरे जातीओ बधा प्रकारो एटले सूक्ष्मवादर पर्यात-अपर्याप्तरूपे बरोबर रीते [शंकारहित ] जाणेली छे, तेज साधु धर्म कहे छे. पण, एम न जाणनारो वीजो ( अजाण ) धर्म कहेतो नथी. तेज कहे छे: 'स आख्याति' ते तीर्थङ्कर अथवा सामान्य केवळी अथवा अतिशय ज्ञानी जातिस्मरण-ज्ञानवाळा, अवधिज्ञानी, मनःपर्यव है ज्ञानी] अथवा श्रुत केवळी होय ते कहे छे. प्र०-धूं कहे छे, जेनावडे जीव विगेरे पदार्थो जणाय छे, ते ज्ञान मति विगेरे पांच प्रकारनं छे, ते, प्र० ते ज्ञान के छे ? उ०-तेवु बीजे नथी, माटे 'अनीदृशं छे, अथवा सकल [वधा] शंसयने दूर करवावडे धर्म संभलावता तेज पोतार्नु अनन्य सदृश (अनुपम) ज्ञान बतावे छे, [अर्थात् संसारी ज्ञानथी तृष्णा वधे, पण तेमना उपदेशना ज्ञानथी AISCIECRECIPEGORRECRUCIENCIEBAR * * *
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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