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________________ आचा० ||६४२॥ | इस wat द्रव्यधुत वे प्रकारे छे, आगमथी अने नो आगमथी तेमां आगमथी घुतनो ज्ञाता (जाणनारो) होय, पण तेमां उपयोग न होय अने नो आगमथी तो ज्ञ शरीर भव्य शरीर सिवाय द्रव्यधुत ते कपड विगेरेनी धूळ दूर करवानुं छे. (द्रव्य ते कपडां विगेरेने अने धूत ते मेल दूर करवानुं छे) आदि शब्दथी वृक्ष विगेरे फळ माटे घोवानुं छे (सुकां पांदडां विगेरे दूर थवाथी फळ तैयार थाय छे, अथवा विना जरुरनी वनस्पति वचमांथी निंदी काढे छे) अने भाव धूत तो आठे कर्मने दूर करवा [ मोक्ष माटे] उपाय कराय ते छे, [आ अडी गाथानो अर्थ छे.] फरी आज विषयने खुलासाथी कहे छे.. उप अहियासित्वसग्गे, दिव्वे माणुस्सए तिरिच्छे य । जो विहुणइ कम्माई, भावधुयं तं वियाणाहि ॥ २५२॥ उपसर्गाने अतिशे (सारी रीते ) सहन करीने कर्म धोवां, एटले देवताना के मनुष्योना के तिर्येचोना दुःख सुखरुप 'सर्गे आवे तेमां समभाव राखीने जे संसार वृक्षना बीज समान मोहनीय विगेरे कमेने दूर करे, ते भाव धुत छे; एवं तुं जाण | अथवा क्रिया अने कारकनो भेद नथी, तेथी कर्म धुनन तेज भावधूत छे, एम जाण नामनिक्षेप कह्यो हवे त्रीजा सूत्रालापाक निष्पन्न निक्षेपामां सूत्रानुगममां अस्खलितादि गुणयुक्त सूत्र कहेतुं ते आ छे: ओवूज्झमाणे इह भाणवेसु आघाइ से नरे, जस्स इमाओ जाइओ सबओ सुपडिले - हियाओ भवति, आघाइ से नाणमणेलिस से किहइ तेसिं समुट्ठियाणं निक्खित्तद सूत्रमं ||६४२ ॥
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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