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________________ आचा० ॥६२८॥ सूत्रम ॥६२८ * * सामान्यथी अभिधान छे, अनाज्ञा एटले भगवानना उपदेश विना पोतानी मेळे आचरे, ते अनाचार छे, ते अनाचारमा प्रवर्तेला के-13 टलाक इन्द्रियोने वश थएला अने दुर्गतिमां जवानी इच्छाथी पोताना मतना अभिमान ग्रहथी बंधायला [कदाग्रही]छे, तथा उपस्थान ते बनावटी तेमनुं धर्माचरण छे, तेमां उद्यम 'करनारा' ते सोपस्थानवाला छे, तेओ बोले छे, के 'अमे पण प्रत्रजित छीए' छतां सारा धर्मना विवेकथी रहित बनीने सावध आरंभमां वर्ते छे. तेम केटलाक कुमार्गनी वासनावाळा (मिथ्यात्वी) नथी, पण आळस निंदा स्तंभ [मान] बिगेरे.(१३ काठिया) थी बुद्धि हणातां तीर्थकरना कहेला सदाचारमा निरुपस्थानवाळा(सारा धर्मानुस्थान रहित) छे, एटले मिथ्यावी चारित्रना नामे अनाचार करे, अने सम्यक्त्वी जीवो प्रमादथी संयम पाळवामां खेद पामे छे. ते बन्नेने दुर्गति मळवानी छे, तेवू जाणीने गुरु कहे छे हे शिष्य ! तने तेवी दुर्गति न थाओ ! [माटे सम्यक्त्व धारण करीने प्रमाद छोडी पुरो 5 संयम पाळ !] आयु सुधर्मास्वामी पोतानी बुद्विथी न्थी कहेता, ते कहे छे, 'एतद' उपर कहेलं (जिनेश्वरनु छे ) अथवा आज्ञा P रहित निरुपस्थानपणुं छे, अने आज्ञा पालनमां सोपस्थानपणुं (चारित्र) छे, आq तीर्थकरनुं दर्शन (मंतव्य) छे. ___अथवा हवे पछी जे उपदेश कहे छे, ते तीर्थकरनुं दर्शन छे, के कुमार्ग छोडीने हमेशां आचार्यनी सेवा करनारा थq ते आचार्यनी दृष्टिमा रहेg ते 'तदृष्टि' छे, एटले तीर्थकरे कहेला आगममां दृष्टि राखनारो छे तथा ते आचार्य अथवा तीर्थङ्करनी आज्ञा पालनारनी मुक्ति थाय छे, ते ' तन्मुक्ति' छे, तथा ते साधु आचार्यने वधां कार्यमा आगळ करे तेथी पुरस्कार छे अर्थात् आचायनी अनुमतिथी कार्य करनारो छे, तत्संज्ञी, ते तेमना ज्ञानथी उपयुक्त छे, तथा 'तन्निवेशन' एटले ते सदा गुरुकुल निवासी छे, तेवाने शुं गुण थाय ते कहे छे. RECEMERICA *-E
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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