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________________ AABHI सूत्रम ॥६२६॥ तेनो नाश थायतो पण अविनष्ट (कायम) ज छे, एज प्रमाणे आत्मानो पण प्रत्युत्पन्न ज्ञान आत्मकपणाथी विनाश थवा छतां बीजो अमूर्त्तत्व असंख्य प्रदेशपणुं अगुरुलघु विगेरे धर्मोना सद्भावथी आत्मानो अविनाशज छे ! आटलुंज बस छे ! ( जैनमन आचा० प्रमाणे मूळ वस्तु द्रव्य पणे कायम रहे छे. अने फक्त पर्यायोनोज नाश अने उत्पति छे. तेथी पर्याय नाश थवा छतां मूळ द्रव्य ॥६२६॥ 18 वस्तु तो कायमज रहे छे.) शंका-जे आत्मा ते जाणनारो, एम तृप्रत्ययवाळो कर्त्ताना अभिधानथी अने आत्माना कर्त्तव्यपणाथी एम थर्बु के जे आत्मा तेज विज्ञाता एम अहीं विपत्ति पत्तिनो अभाव थयो, के जेना वडे आ जाणे छे, ते भिन्न पण होय. जेमके ते करण अथवा क्रिया थशे? जो करण मानीए तो दातरडा माफक भिन्न पदार्थ थशे, अने जो क्रिया मानीए तो कर्त्तामा रहेली संभवे छे, एम कर्ममा रहेली पण संभवे छे, आ प्रमाणे भेदना संभवमा क्याथी ऐक्यता होय ? जैनाचार्य शिष्यने कहे छे, के तेवाने खुल्लं कहे जे मति विगेरे P ज्ञान रुप करणवडे अथवा क्रियावडे सामन्य विशेष आकारपणे जे कोइ (जीव) वस्तुने जाणे छे ते आत्मा छे. अने ते आत्माथी भिन्न ज्ञान नथी; तेम करणपणे भेद नथी, एकने कर्म करणना भेदवडे उपलब्धि थाय छे, जेमके देवदत्त आत्माने आत्मावडे जाणे ॥ छे, क्रियाना पक्षमां पक्षसंबंधी अभेद छे एवं तमे पण स्वीकार्य छेज, बळी भूतिर्येषां क्रिया सैव, कारकं सैव चोच्यते जेमां भूति (धवापj) छे तेज क्रिया छे, अने तेज कारक छे, आ वचन विगेरेथी एकपणुंज छे, कमलावटबालवावम S ARG
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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