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________________ आचा० ॥२५८॥ तपणुं छे, तेमां औदारिक योग्य उत्कृष्ट वर्गणामां एकरूप (संख्या) उमेरवाथी अयोग्य वर्गणा जघन्य थाय छे, ए प्रमाणे एक एक प्रदेश वधतां उत्कृष्ट अंतवाळी अनंती थाय छे. प्रश्न- एमां जघन्य उत्कृष्ट वर्गणानो शुं विशेष छे ? उत्तर -- जघन्यथी असख्येय गुणी उत्कृष्टी छे, अने ते बहु प्रदेशपणाथी अने अति सूक्ष्म परिणामपणाथी औदारिकने अनंति वर्गणा पण ते अग्रहण योग्य छे, तेम अल्प प्रदेशपणाथी अने बादर परिणामपणाथी वैक्रिय (शरीर ) ने पण अयोग्य छे, ए प्रमाणे जेम जेम प्रदेशनो उपचय थाय; तेम तेम विश्रसा परिणामना वशथी वर्गणाओनुं अतिशय सूक्ष्मपणुं जाणवुं; तेज उत्कृष्ट उपर एकरूप नाखवाथी योग्य अयोग्य विगेरे वैक्रिय शरीर वर्गणाओनुं जघन्य उत्कृष्टनुं विशेष लक्षण जाणवुं; तथा वैक्रिय- आहारक ए बन्नेना वचमा रहेली अयोग्य वर्गणाओनुं जघन्य उत्कृष्ट विशेष असंख्येय गुणपणुं छे वळी पूर्वे कला प्रमाणे अयोग्य वर्गणा | उपर एकरूपना प्रक्षेपथी जघन्य आहारक शरीर योग्य वर्गणाओ थाय छे. ते प्रदेश दृद्धिथी वधतां उत्कृष्ट अनंत सुधी थाय छे. प्रश्नः - जघन्य उत्कृष्टतुं केटलं अंतर छे ? उत्तरः --- जघन्यथी उत्कृष्ट विशेष अधिक छे. प्रश्नः - विशेष केटलो छे ? उत्तरः- जघन्य वर्गणानोज अनंत भाग छे, तेनुं पण अनंत परमाणुपणुं होवाथी आहारक शरीर योग्य वर्गणाओनुं मदेश उतरथी वधती वर्गणाओनुं पण अनंतपणुं छे, ते उत्कृष्ट वर्गणामांज एकरूप उमेरवाथी जघन्य आहारक शरीरने अयोग्य वर्ग णाओ थाय सूत्रम् ॥२५८॥
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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