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________________ संख्येय, असंख्येय, अनंत, प्रदेशवाली छे. तथा क्षेत्रथी जे क्षेत्र प्रदेशमां अवगाढ करी रहेल द्रव्यना एक बेथी संख्येय, असंख्येय, आचा० * प्रदेशरूप क्षेत्र प्रदेशो जेनाथी रोकाय, ते क्षेत्र वर्गणा छे. अने काळथी एक वेथी मांडीने संख्येय, असंख्येय, समय स्थितिमा र15 हेल वगणा लेवी अने भावथी रुप, रस, गंध, स्पर्श, तथा तेनी अंदर रहेला भेदोरूरुप सामान्यथी भाव वर्गणा जाणवी, अने विशे-13 सूत्रम ॥२५७॥ पथी हवे कहे छे. ४॥२५७॥ (१) परमाणुओनी एक वर्गणा छे. एज प्रमाणे एक एक परमाणुना उपचय ( वधारा) थी संख्येय प्रदेशवाला स्कंधोनी संख्येय वर्गणाओ छे. तेज प्रमाणे असंख्येय प्रदेशवाला स्कंधोनी असंख्येय वर्गणा जाणवी आ वर्गणाओ औदारिक विगेरे परिणाम ने योग्य थइ शकती नथी तथा अनंत प्रदेशनी बनेली अनंती वर्गणाओ पण ग्रहण योग्य नथी. तेवी वर्गणाओने उलंघीने औदारिक ग्रहण योग्य थाय छे. ते अनंती अनंत प्रदेशरूप अनंती वर्गणाओज छे एटले पूर्वे कहेली अयोग्य उत्कृष्ट वर्गणानी अंदर 'एक | एक मेळववाथी औदारिकशरीर ग्रहण योग्य जघन्य वर्गणाओ थाय छे एम एक एक प्रदेश वधारतां वधेली औदायिक योग्य उत्कृष्ट वर्गणा ज्यांसुधी अनंती थाय त्यांसुधी लेवी. प्रश्न-जघन्य उत्कृष्टानो शुं भेद छे ? व उत्तर-जघन्यथी उत्कृष्ट विशेष अधिक छे, तेमां विशेष आ छे के औदारिक जघन्य वर्गणानो अनंतमो भाग जे छे तेना & है अनंता परमाणुपणाथी एक एक प्रदेशना उपचय थएथी औदारिक योग्य वर्गणानो जघन्य उत्कृष्ट मध्यवर्तीनी वर्गणाओनुं अन HARRAK
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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