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________________ सूत्रम् ॥५७७॥ से-ते परिग्रह छोडनारने सारीरीते प्रतिबद्ध तथा सारी रीते उपनीत ज्ञान विगेरे छे, (परिग्रह छोडनारने सारीरीते त्रण आचा051 रत्नोनी प्राप्ति छे) एवं जाणीने गुरु कहे छे, हे मानव ! तुं परम ज्ञान चक्षुवाळो बनीने अथवा मोक्षनी एकदृष्टिवाळो वनीने जुदी ॥५७७॥ जुदी जातना तप अनुष्ठाननी विधिवढे संयम अनुष्ठानमां पराक्रम कर' शा माटे आ पराक्रम करवानो उपदेश करे छे ? 'एएसचेव' जेओ आ परिग्रहथी विरक्त बनीने परम चक्षुवाळा थया छे, तेओमांज परमार्थथी ब्रह्मचर्य छे, पण बीजामां नथी, कारणके ब्रह्म चयनी नववाड वीजामां नथी, अथवा ब्रह्मचर्य नामनो आ श्रुतस्कंध छे, अने तेनु वाच्य पण ब्रह्मचर्य छे, ते आ ब्रह्मचर्य परिग्रह न मा राखनाराभोमांज छे. आ प्रमाणे सुधर्मास्वामी कहे छे, के में का, अने हवे कहीश, ते बधुं सर्वज्ञना उपदेशथी कहुं छु, ते बतावे छे, 'सेसुअंचमे-जे जे का, अने जे हवेकहीश, ते में तीर्थकर पासे सांभळ्यु छे, अने ते प्रमाणे मारा आत्मामां स्थिर थयु, माटे अध्यात्म छे, एटले मारा चित्तमां पण नेज प्रमाणे छे, शुं छे? ते बतावे छे, बन्धथी मोक्ष ते बन्ध प्रमोक्ष छे, ते अध्यात्ममांज छे, ही अने अध्यात्म ते ब्रह्मचर्य छे, ब्रह्मचर्यवाळानो मोक्ष छे. वळी इत्थ आ परिग्रह राखवाथी विरत तेछे, प्र०-कोण छे ? उ०-जेने गृह नथी ते अणगार छे, ते साधु दीर्धरात्र (आखी जींदगी) सुधी परिग्रहना अभाववाळो बनीने भूख तरस विगेरेनां आवेलां कष्टोने सहन करे, वळी गुरुउपदेश करे छे, 'पमत्ते'-विपयो विगेरे प्रमादोथी धर्मथी विमुख थएला गृहस्थो तथा वेषधारीओने तुं जो, देखीने शुं करवू ? ते कहे छे-अप्रमत बनीने संयम-अनुष्ठानमां यत्न करे. वळी, 'एयम्' आ पूर्वे कहेलु संयम-अनुष्ठान मुनिनु । | सर्व स्वमौन छे. ते सर्वज्ञान कहेलं छे, ते सारीरीते पाळg आ प्रमाणे हुं कहुं छु. ASNARIES CCCCES
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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