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________________ ४ (वभाव) परिग्रहनी छे, अथवा ते परिग्रहधारी पोते वधार्थी चमके छे. [ के मारो परिग्रह कोइ न लइ ले !] अथवा दिगम्बरने आचा०४ आ शरीर नभाववा आहारादिक लेचा वीजु अल्प पात्र लकत्राण (कपडु) विगेरे रुप धर्मोपकरणना अभावथी गृहस्थना घरमा आहार में वापरतां सम्यग् उपायना अभावथी अविधिए अशुद्ध आहार विगेरे खातां कर्मबन्धथी उत्पन्न थएल महाभयनो हेतु होवाथी महाभय ॥५७६॥ ॐछे, तथा आ धर्म शरीरने बधी रीते आच्छादन (ढांकवाना) अभावथी बीभत्स होवाथी बीजाओने महा भयरूप छे. आ प्रभाणे परिग्रह महाभय छे, तेथी कहे छे के 'लोग'-असंयत लोकन अल्प विगेरे विशेषवालं द्रव्य तेने महाभयरूप छे. (सूत्रमा च शब्द पुनः ना अर्थमां छे, णुं वाक्यनी शोभा माटे छे) अथवा लोक वित्तने बदले लोकत लइए तो आहार भय मैथुन ४ परिग्रह संज्ञावाळु लोकवृत्त छे. ते लोकनुं वलण मोटा भयने माटे छे. एवं उत्तम साधुए ज्ञ परिज्ञावढे जाणीने प्रत्याख्यान परिज्ञा वडे ते लोकोनी संसारी चेष्टाओने त्यागी देवी, ते त्यागनारने शुं थाय, ते कहे छे, 'एएसंगे'-ए थोडं घणु द्रव्य संग्रह करवान अ* थवा शरीर आहार विगेरेनी मू ने न करवाथी ते परिग्रह राखवाथी यतुं दुःख ते साधुने न थाय वळी: से सुपडिबुझं सूवणीयंति नच्चा पुरिता परमचक्खू विपरिकम्मा, एएसु चेव बंभचेरं तिबेमि, ..' से सुयं च मे अज्झत्थयं च मे-बधपमुक्खो अज्झत्थेव, इत्थ विरए अणगारे दीराहयं ति तिक्खए, पमत्ते बहिया पास, अपमत्तो परिवए, एयं मोणं सम्म अणुवासिज्जासि तिबेमि __ (सू० १५०) लोकसारअध्ययने द्वितीयोदेशकः ॥५-२॥ -एलए ॥५७६॥ ___ नजर
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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