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________________ है नो कर्मद्रव्य कपायो छे तथा उत्पत्ति कषायो शरीर उपधि क्षेत्र वास्तु स्थाणुं विगेरे उत्पत्ति कषायो छे, एटले जेने आश्रयीने कपाআত্মা योनी उत्पत्ति थाय; ते उत्पत्ति कषाय जणवा; तेवुज शास्त्रमा कयुं छे:'किं एत्तो कट्टयरं,जं मुढो थाणुअम्मि आवडिओ। थाणुस्स तस्सरूइ, न अप्पणो दुप्पओगस्स ॥१॥ सूत्रम् ॥२५३॥ ___ कोइने स्थाणुं ( झाडनु लुटुं ) विगेरे वागतां मूढ माणस पोतना प्रमादनो दोष न काढतां; तेज स्थाणा उपर क्रोध करे छे, 18/॥२५३॥ | एनाथी वधारे दुःखदायक बीजु सुंछे ? प्रत्ययकषाय.-कषायोना जे प्रत्ययो एटले बंधनां कारणो छे ते अहींयां सुंदर अने खराब, एवा भेदवाळा शब्द विगेरे लेवा; कारणके एनाथीज उत्पत्ति तथा प्रत्ययन कार्य तथा कारणरूपे-भेद रहेलाछे. आदेश कपाय.-बनावटी भ्रमर विगेरे चढाववी ते छे. रसकपाय-रसथी एटले कडवा तीखा एम पांच मकारना रसनी अंदर रहेला छे ते लेवाभावकषाय-शरीर, उपधि, क्षेत्र, वास्तु, स्वजन, प्रेष्य, अर्चा विगेरे निमित्तथी प्रगट थएला जे शब्द विगेरे काम गुण कारण का यंभूत कषाय कर्मना उदयरूप आत्माना परिणाम विशेष ते क्रोध मान माया लोभ एवा चार कपाय छे. ते दरेकना अनंतानुबंधी द अप्रत्याख्यान प्रत्याख्यान आवरण तथा सज्वलन, एवा चार भेद वहे गणतां सोळ भेद वाला भाव कषाय छे. तेओर्नु स्वरूप तथा - अनुबंधनु फल गाथाओ वडे कहे छे. SEASON SESSISSESGEGO
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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