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________________ पर ते सयणपेसअस्थाइएसु अज्झत्थओ अ ठिआ ॥ १८० ॥ आचा० पहेलां अने पछी परिचयवाळां माता, पिता, सासु, ससरा विगेरे जे स्वजन (सगां) छे. तथा नोकर विगेरे प्रेष्य छे अने धन ॥२५२॥ 18 धान्य कुप्य (तांबु-पीत्तळ विगेरे) वास्तु (घर) रत्न ए अर्थ कहेवाय छे (ते स्वजन विगेरेनो द्वंद्व समास करवो.) आ बधाने अंगे कपायो विषयपणे रह्या छे, अने आत्मामां प्रसन्नचंद्र राजर्पिनी माफक विषयीपणे छे; तेम एकेन्द्रिय विगेरेने पण कपायो छे. आ प्रमाणे कपायन स्थान बताववा वडे सूत्रपदमां लीधेलं छे. स्थान समाप्त करीने जीतवा योग्य विषयोवाळा कपायोना निक्षेपा कहे छे. णामंठवणादविए उपत्ती पच्चए य आएसो । रसभावकसाए या तेण य कोहाइया चउरो ॥१८१ ॥ कपायना निक्षेपा-जेवो छे तेवो अर्थ न बतावे; ते निरपेक्ष अभिधान मात्र ते नाम कषाय छे अने सदभाव (तदाकार चित्र विगेरे) असद्भाव (तदाकार नही.) जेम इंट विगेरेना देव बनावे; ते बे प्रकारे स्थापना निक्षेप छे. जेमके, भयंकर भृकुटि (आंखनी भ्रमर) क्रोधथी चढावी कपाळमां त्रण सळ पाडी त्रीशूळ साये मोडं तथा आंख लाल करी होठ दांत पीसतो परसेवाना पाणी विगेरेथी संपूर्ण क्रोधन चित्र पुस्तक अथवा अक्ष वराटक विगेरेमा रहेल ते स्थापना कषाय छे. (क्रोध जीवने आश्रयी छे, अने क्रोधनां 8 चिन्ह जेने प्रगट थयां होय; तेवा क्रोधीनुं चित्र पुस्तक अथवा वीजामां चित्र पाडे; ते कषायनुं चित्र होवाथी; स्थापना कषाय छे.) द्रव्यकषायोमां ज्ञ शरीर तथा भव्य शरीरथी व्यतिरिक्त कर्मद्रव्य कपायो तथा नोकर्मद्रव्य कषायो छे, तेमां प्रथम जे उदीर्णामां न | आवेला; अथवा उदीर्णामां जे पुद्गलो आवेला होय ते पुदगलो द्रव्यना प्रधानपणाथी कर्मद्रव्य कपायो जाणवा. विभितक विगेरे SSAGARGRESEARLEAF SASRA
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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