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________________ 6-5-16 आचा० ब- ॥५५२॥ V५५२॥ चइऊणं संकपयं, सारपयमिणं दढेण चित्तवं। अत्थि जिओ परमपयं, जयणाजा रागदोसेहिं ॥२४॥ प्रथम शंका छोडी दे, अमारा करेला तप विगेरेनुं फल मोक्ष आपशे के नहि, एवो विकल्प ते शंका छे, ते सूत्रम् ४ शंका, पद ते निमित्तकारण छे, जेमके जिनेश्वरे कहेला इन्द्रियोथी न जणाय, एवा झीणा विषयो होवाथी ते फक्त आगम प्रमाणे | मानवा जोइए, तेमां न समजतां संदेह थाय तो पण ते छोडीने आ ज्ञानादिक सार जे पूर्वे वतावेल छे, तेने दृढ पणे (स्थिरचित्ते) कुमार्गे चालनाराओथी ठगाया विना निश्चलपणे मानवां, तथा पाळवां, ते शंका दूर करवा गथाना पाछला चे पदमां कडं छे के | जीव छे, आम प्रथम जीवने वधा पदार्थमा प्रथम लेवाथी अने जीवप्रधान होवाथी बीजा अजीव विगेरे पदार्थो पण जाणी लेवा, नि (के वधा पदार्थो विद्यमान छे) तथा जीव वाळो (शरीरधारी के विना शरीरनो) जीव जीवे छे, तथा जीवशे तथा ते संसारी जीव शुभ अशुभ कर्मना फलने भोगवनारी, अने ते 'हुँ पोते' एम प्रत्यक्ष साध्य छे, अथवा तेने थती इच्छा द्वेष प्रयत्न विगेरे कायोना अनुमानथी पण साध्य छे, तेज प्रमाणे अजीवो पण धर्म अधर्म आकाश पुद्गलने गति, स्थिति, अवगाह आपवाना; तथा बे अणु विगेरे स्कंधना हेतुरूप छे. तेथी, पांच द्रव्यसिद्ध थयां, ए प्रमाणे आस्रव-संवर बंध निर्जरा पण विद्यमान छे. कारणके, पुरुषा-2 थं प्रधानपणे छे. आ पदार्थमां आदिजीव अने अंते मोक्ष ग्रहण करवाथी वचला पदार्थों आवी जाय छे. एटले जीव तो सूत्रमा साक्षात छे, अने मोक्ष हवे पछी बतावे छे के, परम तेज पद ते, परमपद छे. एम जाणवू के, मोक्ष शुद्धपद कहेवातुं होवाथी विद्य-पू मान छे. कारणके, ते बंधथी विरुद्धपक्षमा छे, अथवा बंधनी साथे अविनाभाविपणे छे. (एटले बंध त्यारेज कहेवाय के कोइपण भान होवाथी वीजा अज - ना फलने भोगवना वालो (शरीरधारी - UAECCASSE
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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