SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 31
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सूत्रम् ॥२४८॥ ॐ- यो स्थान छे, ते अहीं लQ कारणके तेओनेज जीतवापणानो अधिकार छे. आचा०४ पश्न:-तेओर्नु कयुं स्थान छे के जेने आश्रयीने ते थाय छे उत्तर-शब्दादि विपयोने आश्रयीने ते थाय छे ते वतावे छे. ॥२४८ पंचसु कामगुणेसु य सदप्फरिसरसरूवगंधेसुं । जस्स कासाया वहृति मूलहाणं तु संसारे ॥ १७६ ॥ 8 अहीं इच्छा अनंगरूप जे काम छे. तेना गुणोने-श्राश्रयी चित्तनो विकार छे. ते वतावे छे. ते विकारो शब्द, स्पर्श, रस, रूप, दगंध एम पांच छे. ते पांचे व्यस्त अथवा समस्त-विषय संबंधी जे जीवन विषय सुखनी इच्छाथी अपरमार्थने देखनार संसार प्रेमी जीवने राग द्वेपरूप अंधकारथी आंखनुं तेज हठी जवाथी साग-माठा पदार्थ प्राप्त थतां कपायो थाय छे ते मूलनुं संसार झाड थाय छे तेथी शब्दादि विपयथी उत्पन्न थए करायो संसार संबंधी मूळ स्थानज छे-एनो भावार्थ आ छे के राग विगेरेथी डामाडोळ थएल सचिचवालो जीव परमार्थने न जाणवाथी आत्माने तेनी साथे कई संबंध नथी छतां विपयने आत्मारूपे मानीने आंधळाथी पण वधारे आंधळो वनी कामी जीव रमणीय विषयो जोइने आनंद पामे छे तेथी का छेदृश्यं वस्तु परं न पश्यति जगत्यन्धः पुरोऽवस्थिते, रागान्धस्तु यदस्ति तत्परिहरन् यन्नास्ति तत् पश्यति ॥ कुन्देन्दीवरपूर्णचंद्रकलशश्रीमल्लतापल्लवा, नारोप्याशुचिराशिषु प्रियतमा गात्रेषु यन्मोदते ॥ 6 आंधळो छे ते जगतमां जोवा जेवी वस्तु जोइ शक्तो नथी पण रागथी आंधळो थएलो पोते आत्मा छे ते आत्म भावने छोडीने अनात्म भावने जुए छे जेमके छती वस्तु कुंद (फुल) इन्दीवर (कमळ) पूर्णचंद्र कळस श्रीमत् लतापल्लवो जेवानी गंदकीना ढगला -- -ॐॐ
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy