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________________ आचा० सूत्रम् ॥२४७ ર૪ળા. छे तेने आश्रयी जाणj (तैजस अने कार्मण शरीर भव्य जीव साये अनादि काळथी जोडाएलां छे. अने जीव मोक्षमा जता ते बने जीवथी जुदां पडे छे ते अनादिसांत कहेवाय छे.) अनादि अपर्यवसान ते धर्म अधर्म आकाशना संबंधी छे. (तेमनी स्थिति पूर्वनी जेवीछे, तेवीज हमेशां रहे छे.) गणना स्थान-एक बेथी मांडीने शीर्ष पहेलीका सुधी जे गणत्री छे. ते लेवी. (जैनमा पराध उपरांत संख्या छे ते अनुयोगद्वार सूत्रमा बतावेलो छे, त्यांथी जोवी.) 81 संधान स्थान-ते बे प्रकारे छे. द्रव्यथी अने भावथी छे. द्रव्यथी छिन्न अने अछिन्न एम वे भेदे छे. ते स्वीनी कांचळी विगेरेना : टुकडा करीने सांधवानुं छे. अने अछिन संघानमा पक्षण उत्पद्यमान तंतु विगेरे जोडाण छे (ताणो वाणो कपडामा जोडाय ते.) भाव संधान प्रशस्त अने अप्रशस्त एम बे भेदे छे तेमा प्रशस्त अछिन्न भाव संधान उपशम क्षपक श्रेणिए चढता मनुष्यने अपूर्व संयमस्थान एक सरखांज होय छे. पण वचमां तुटक पडती नथो अथवा श्रेणि सिवाय. प्रवर्धमान कंडकनां लेवां. छिन्न प्रशस्त भावसंधान भावथी औदयिक विगेरे वीजा भावमां जश्ने पाछा शुद्ध परिणामवाला थइने त्यां आवतां थाय छे. ___ अप्रशस्त अछिन्न भाव संधान उपशम श्रेणिएथी पडतां अविशुद्धमान परिणामवाला मनुष्यने अनंतानुबंधि मिथ्यात्वना उदय सुधी जाणवु-अथवा उपशम श्रेणि सीवाय कषायना वशथी बंध अध्यवसाय स्थानोने चढतां चढतां अवगाह मान करनाराने होयछे. __ अप्रशस्त छिन्नभाव संधान ते औदयिक भावथी औपशमिक विगेरे बीजा भावमा जइने पाछा त्यांज औदयिक भावमा आवे ते छे. आ द्वार जोडकुं साथेज कडं एटले संधानस्थान द्रव्य विषयतुं पहेलुं छे, अने पछीर्नु भाव विषयर्नुछे अथवा भावस्थान जे कपा
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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