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________________ आचा० ॥५२३॥ | केटलाक अन्यदर्शनी ओ परलोकने बताववानी इच्छावाळा पोताना मंतव्यना प्रेमथी वीजानुं मंतव्य जुलुं ठराववा विवाद करे छे, जेमके भागवत मतना लोको कहे छे के पचीस (२५) तत्वना ज्ञानथी मोक्ष थाय छे. आत्मा सर्वव्यापि छे, गुण रहित छे, चैतन्य लक्षणवाळो छे, अने विशेष रहित सामान्य तत्व छे, तथा वैशेषिक मतवाला कहे छे, द्रव्य विगेरे छ पदार्थना परिज्ञानथी मोक्ष छे, समवायिज्ञान गुणवडे इच्छा प्रयत्न द्वेष विगेरे गुणोथी गुणवान् आत्मा छे, परस्पर निरपेक्ष सामान्य विशेषरूप तत्व छे, शाक्य मतवाला कहे छे, परलोकमां जनार आत्माज नथी, निश्चयथी सामान्य क्षणिक वस्तु छे, मीमांसक कहे छे, के मोक्ष तथा सर्वज्ञनो अभाव छे, तथा केटलाक मतमां पृथ्वी विगेरे एकेन्द्रिय जीवो नथी, वीजा केटलाक वनस्पतिमां पण अचेतनपशुं माने छे, तथा केटलाक वेयेन्द्रि विगेरे कृमी विगेरेमां जंतुपणुं मानता नथी, अथवा जीवपणुं मानवा छतां तेना वधमां बंध मानता नथी, अथवा अल्प मात्र बंध माने छे, तथा हिंसामां पण भिन्न वाक्यपणुं छे, ते कहे छे: प्राणी प्राणज्ञानं घातकचित्तं च तद्रताचेष्टा । प्राणैश्च विप्रयोगः पञ्चभिरापद्यते हिंसा || जीव जीवनुं ज्ञान, घात करनारनुं चित्त, अने तेमां रहेलीचेष्टा पाणा साथे वियोग, आ प्रमाणे पापने जाणवाथी हिंसा थाय छे. तथा औदेशिकना परिभोगनी आज्ञा आपवा विगेरेनी जे विरूद्ध वात छे, ते पोतानी मेळे विचारखं, प्र-ते ब्राह्मण तथा श्रमणो धर्म विरुद्ध जे वोले छे, ते सूत्र वडेज बतावे छे, अन्य दर्शनीभुं कहेवु आ छे केः - ( ' से दिहं चेण इत्यादि ' थी लइने 'नत्वित्य दोसोत्ति, ' ) दिव्यज्ञानवडे अमे अथवा, सूत्रम् ॥५२३ ॥
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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