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________________ सूत्रम् ॥५०४॥ अणुवटिएस्तु वा उबरयदंडेसु वा अणुवरयदंडेसु वा सोवहिएसु वा अगोवहिएसु वा संजोआचा० गरएसु वा असंजोगरएसु वा, तच्चं चेयं तहा चेयं अस्सि चेयं पवुच्चइ (सू० १२६) गौतम (सुधर्मा) स्वामी कहे छे के:-जे हुं कहुं हुं ते हुँ पोते तीर्थकरनां कहेलां वचनना तत्त्वने जाणीने कई छ, तेथी मारूं ॥५०४॥ वचन मानवा योग्य छ, अथवा बौद्धभतमां मानेलु क्षणिकपसुं दूर करवावडे कबु के, जे में पूर्वे का ते हमणां पण हुंज कहुं हुं, पण वीजो कहेतो नथी; अथवा 'से' शब्दनो अर्थ 'ते' थाय छे, एटले जे श्रद्धानमां सन्यक्त्व थाय छे, ते तत्त्वने हुँ कहुँ छ जेओ पूर्व काळमां थया जे वर्तमानमां छे, अने भविष्यमां थशे; ते वधा तीर्थकरो एम कहे छे. वळी पूर्वकाळ अनादी होवाथी अनंता थया; अने भविष्यकाळ अनतो होबाथी अने सर्वदा तीर्थकर होवाथी अनंता थशे; अने वर्तमानकाळ आश्रयी जे ६ वखते आ प्ररुपणा थती होय; तेमां नक्की संख्या न होबाथी उत्कृष्ट अथवा जघन्य पदे कहेवाय, तेगां उत्सर्गथी अढी द्वीपनी अदर द एकसोने सीतेर थाय, ते आ प्रमाणे ५-महाविदेहमा एकेक विदेहमा ३२ श्रेणी होवाथी दरेकमां एकेक गणतां १६० थाय, अने ५ भरत ५ ऐरावतना मेळवतां कुल १७० थाय अने जघन्यथी २० थाय ते आ प्रमाणे-५ महा विदेहमां महाविदेहनी अंदर रहेली महा नदीना बने किनारे ६ मळी पूर्व पश्चिम साथे लेतां चार चार होय ते पांचेना मळी वीश थाय. अने भरत अरावतमां तो एकांत सुखम विगेरे आरामां है अभाव छे, वीजा आचार्य कहे कहे छे, के मेरुना पूर्व अने पश्चिम महाविदेहमां एकेक तीर्थकर होवाथी महाविदेहमा चेज छे, अने AAKAAREER
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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