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________________ सूत्रम् | तेत्रीस सागरोपमनी छे. अने एकवार त्यां उत्पन्न थया पछी लागलागट उत्पत्ति नथी; माटे कायस्थिति एकज भवनी गणाय. आदि उपर जे स्थिति बतावी छे, ते कायसंबंधी तथा भवसंबंधी बन्ने प्रकारे उत्कृष्ट जाणवी जघन्यथी तो वधाओनी स्थिति अंतमुहुर्त्तनी है छे, पण नारकी, देवतानी भवस्थिति दश हजार वर्षनी छे. आ बधुं काळने आश्रयी का; अथवा अद्धास्थान ते सपय आवलिकामुहूर्त अहोरात, पक्ष, मास, ऋतु, अयन संवत्सर, युग, पल्योपम, सागरोपम, उत्सर्पिणी, अवसरर्पिणी, पुद्गलपरावर्तन, अतीत, 4 ॥२४५॥ अनागत, एम बधा काळरूपे जाणवू. उर्द्धस्थान ते, कायोत्सर्ग विगेरे छे, अने एना उपलक्षणथी निषण्णा (बेस) विगेरे पण जाणवू. उपरतिस्थान ते, विरति छे. तेनुं स्थान एटले,साधुपणु, अथवा श्रावकपणुं जाणवू; पण साधुनी सर्व विरति अने श्रावकनी देश विरति छे. वसतिस्थान एटले, जे स्थानमां गाम अथवा घर विगेरेमां अमुक काल रहेवार्नु थाय; ते वसति छे. संयमस्थान सामायिक छेदोपस्थापनीय परिहार विशुद्धि तथा सूक्ष्मसंपराय, यथाख्यात, एम पांच प्रकारे संयम छे. ते दरेकनां स्थान असख्यात छे. प्रश्न-असंख्यातनी संख्या केटली छे? । उत्तर-अति इन्द्रियपणानो विषय होवाथी साक्षात् देखाडवाने शक्तिवान् नथी, तेथी सिद्धांतमा आपेली उपमा प्रमाणे कहीए छीए. एक समयमां सूक्ष्म अग्निकायना जीवो असंख्येय लोकाकाश प्रदेश प्रमाण उत्पन्न थाय छे तेनाथी असंख्यात गुण अग्निकाय 2 पणे परिणमेला छे तेनाथी पण ते कायस्थिति असंख्येय गुणी छे. तेनाथी पण अनुभाग बंध अध्यवसाय स्थान असंख्येय गुणाछे है ASSISASAGAR
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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