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________________ सूत्रम् ॥२४ ॥ अयोगिपणार्थी भवसंततिनो क्षय तेनाथी मोक्ष छे, माटे ते वधां कल्याणोन मुळ विनय छे. (माटे विनय संपादन करवो.) आचा० विनय मोक्षन कारण छे, तेज प्रमाणे विषय (इन्द्रियोनो स्वाद,) तथा क्रोध, मान विगेरे कपायो संसारर्नु मुळ छे. द्र मुळनु वर्णन कर्यु. हवे स्थानना पंदर प्रकारे निक्षेपा बतावे छे. ॥२४४॥ णामंठवणादविए खित्तद्धा उढ उवरई वसही। संजम पग्गह जोहे अयल गणण संघणाभावे ॥१७५॥ नामस्थापना द्रव्य, क्षेत्र, काळ, विगेरे छे, ते कहे छे नामस्थापना सुगम छे. द्रव्यमा ज्ञ शरीर विगेरे छोडीने द्रव्यस्थानमां सचित्त अचित्त अने मिश्रद्रव्यर्नु जे स्थान, (आश्रय) छे ते लेQ. क्षेत्रस्थानमा भरत विगेरे छे, अथवा ऊंचे नीचे अथवा तिरछा (त्रांसा) & लोकमां जे क्षेत्र छे ते क्षेत्रस्थान छे अथवा जे, क्षेत्रमा स्थान- व्याख्यान थाय ते लेवु. अद्धा (काळ) तेनुं स्थान के प्रकारे. (१) कायस्थिति, (२) भवस्थिति छे. कायस्थिति, ते पृथ्वी, पाणो, अग्नि, वायुमां असंख्यात, उत्सर्पिणी, अवसर्पिणीनो काळ छे, तथा वनस्पतिकायनो अन्तकाळ छे. घे इन्द्रिय विगेरे विकलेन्द्रियनीकाय स्थितिसंख्याता हजार वर्षनी छे. पंचेन्द्रिय, तिर्यंच, तथा मनुष्यनी कायस्थिति सात आठ भव छे. पण ते बधानी भवस्थिति नीचे मुजब छे:पृथ्वीनी बावीस हजार, पाणीनी सात हजार, वायुनी त्रण हजार, वनस्पतिनी दश हजारवर्षनी उत्कृष्टि स्थिति छे. अग्निकायनी * त्रण रात्रीदिवस छे. बे इन्द्रिय शंख विगेरेनी, बार वर्षनी छे, त्रण इन्द्रिय कीडो विगेरेनी स्थिति ओगणपचास दिवसनी छे, चार । इन्द्रिय भमरा विगेरेनी छ मासनी छे पांच इन्द्रिय तिर्यंच, तथा मनुष्यनी त्रण पल्योपमनी छे, देव, तथा नारकीनी स्थिति भवसंबंधी
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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