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________________ ॥४४९॥ IF कम्ममूलं च जं छणं, पडिलेहिय सवं सामायाय 'दोहि' अंतेहिं अदिस्समाणे तं परिन्नाय 'मेहावी' आचा विइत्ता लोगं वंता लोगसन्नं से मेहावी परिकमि ज्जासि ॥सूत्र ११०॥ तिबेमि शीतोष्णीयोदेशः? । सूत्रम् कर्मनुं मूळ कारण मिथ्यात्व अविरति प्रमाद कपाय योग छे एने समजीने क्षण एटले हिंसा ते पाणीओने दुःख देवारुप कृत्य ॥४४९॥ । कर्मनुं मुख्य मुळ समजीने छोडg. पाठांतरमा 'कम्ममाहू' पाठ के तेनो अर्थ आ छे के उपादान क्षण आ कर्मना छे ते क्षण कर्म छे ते कर्म मेळवीने तेज क्षणे निवृत्ति करे तेनो भावार्थ आ छे अज्ञान प्रमाद विगेरेथी जे क्षणे कर्मना हेतुरुप अनुष्ठान कर्यु तेज क्षणे चित्त स्थिर करीने तेना Pउपादान हेतुने निवृत्ति करे (जेनाथी कर्म बंधाय तेने छोडे अथवा तेनी गुरु पासे शीघ्र आलोचना ले) वळी उपदेश करे छे पूर्वे 18 कहेलां कर्मने समजीने तथा कर्मना विरुद्ध (कर्म हणनार) गुरुनो उपदेश सांभळीने जे रागद्वेष अंतरुपे छे तेनाथी दूर रही अथवा तेनो संवन्ध छोडीने अथवा कर्म उपादाननां कारण रागादिकने ज्ञ परिज्ञावडे जाणीने प्रत्याख्यान परिज्ञावडे तजे अने रागादिथी मोहित लोक अथवा विषय कपाय लोक जाणीने तथा विषयनी वांछा अथवा धन उपर ममत्वभाव छोडीने मर्यादामा रहेलो ते मुनि संयम-अनुष्ठानमा प्रयत्न करे; अथवा विषयतृष्णा, अथवा छरिपुवर्गने. अथवा आठ कर्मने आवतां अटकावे. आ प्रमाणे सुधर्मास्वामी कहे छे के हुं कहुं छु. शीतोष्णीय नामना अध्ययननो पहेलो उदेशो समाप्त थयो. RAPECIA9-%ES
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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