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________________ - आचा० सूत्रम् १४४८॥ ॥४४॥ CAGLEGESSIS 5 उद्योत स्थावर सूक्ष्म साधारण मळी कुल १३ प्रकृति क्षय थता ८० प्रकृति रहें छे तथा तीर्थंकर नाम न होय तो ९२मांथी १३जतां ७९छे. तथा आहारकचतुष्टय दूर थतां ९३ मांथी ८९ रहे अने तेमांथी नारकी विगेरे संबंधी १३ दूर थतां ७६ रहे अने तीर्थकर नाम न होय तो ८९ मांथी १ दूर थतां ८८ रहे अने तेमाथी १३ जतां ७५ रहे छे. तेमा ८० अथवा ७६ माथी तीर्थकर केवळी शैलेशी अवस्थामां पहोंचेलाने छेल्लाना पहेला [द्विचरम] समयमां तीर्थंकर नाम ६ कर्म उमेरवाथी वेदाती नव कर्म प्रकृति सिवायनी प्रकृति दुर थतां बाकी अंत समये नव प्रकृति सत्तामा रहे छे ते कहे छे. [१] मनुष्य गति [२] पंचेन्द्रिय जाति [३] त्रस [४] वादर [५] पर्याप्तक [६] सुभग [७] आदेय [८] यशकीर्ति [९] तीर्थ-/४ कर ए नव सिवायनी बाकीनी ७१ अथवा ६७ द्विचरम समयमां नष्ट थाय छे अने तीर्थकर सिवायना केवळीने आठ होय छे एटले तेने तीर्थंकर नाम छोडीने बाकीनी आठ प्रकृति सत्तामां होय छे आ तेनुं छेल्लं स्थान छे [त्यार पछी मोक्षमा जतां एक पण प्रकृति 6 नथी गोत्रनां वे सत्तास्थान छे. उंच नीच गोत्रना सद्भावमां एक सत्तास्थान छे तथा अग्निकाय अने वायुकायने उंच गोत्र वमतां । | मलिनभाववाळी अवस्थामां फक्त नीच गोत्रनी सत्ता रहे छे. अथवा अयोगी गुणस्थाने द्विचरम समये नीच गोत्रनी सत्ता दूर थतां 8 उंच गोत्र एकल रहे छे एटले बे गोत्रनी अवस्थामा प्रथम सत्ता स्थान छे अने बनेमांथी एक होय ते वीजुं सत्ता स्थान छे अंतरायनी पांचे प्रकृतिओ साथे दुर थती होवाथी तेनुं जुएं वर्णन बताव्युं नथी.) आ प्रमाणे कर्मोनी सत्ता जाणीने साधुए ते सत्ताने दूर करवा प्रयत्न करवो. वळी बीजूं कहे छे, ॐॐॐॐॐॐॐ
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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