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________________ आचा० ॥४२४॥ प्रकारे थाय छे (आम वे भाव आव्या, बाकीनामां पण तेज प्रमाणे जाणवा. ) जीवना आ भवगुणनुं शीतपणुं अने उष्णपणाना रुपनुं वर्णन नियुक्तिकार खुलासाथी पोतेज कहे छे. सीयं परिसह पमायुवसमविरई सुहं चउण्हं तु । परीसहत चुज्जमकसाय, सोगाहिवेया रई दुक्खं दारं | २०२| भावशीत, ते अहीं जीवना परिणामरूपे ग्रहण करे छे. ते आ परिणाम छे, के संयममार्गमांथी न पडतां साधुए सकाम निर्जरामाटे परिषदो समभावे सहन करवा, तथा कार्यमा शिथीलता एटले 'विहारमां प्रमाद' न करवो तथा मोहनीय कर्मने शांत करवुं ते सम्यक्त्व. देशविरति तथा सर्व विरति लक्षणवाळो छे अथवा उमशम श्रेणी आश्रयी छे. ते अथवा क्षपक श्रेणी आश्रयी कपाय विगेरेना क्षयरूप छे, विरति—प्राणातिपात विगेरेथी दूर रहेबुं ते विरति छे. एटले ते सत्तर प्रकारनो संयम छे, तथा सुख एटले पूर्वना पुन्यना उदयथी भोगव ते छे. आ परिषह विगेरे तथा शीत गरमी बन्नेने गाथाना वे पदमां कहे छे: परिपद्द पूर्वे कहेला स्वरूपबाळा छे; अने तपमां उद्यम करो; ते तप बार प्रकार छे, ते शक्ति प्रमाणे ; तथा विगेरे कषायो छे, तथा इष्ट न मळे; अथवा नाश थाय, तेथी शोक थाय; ते आधि छे, तथा स्त्री, पुरुष, नपुंसक, एम ऋण वेद छे. अरति एटले, मोहना विपाकथी चित्तमां मलिनता थाय ते छे, तथा रोग विगेरे दुःखो छे. आ परिषह विगेरे पीडाकारक होवाथी आत्मा तपे तेथी उष्ण छे. आ प्रमाणे कामां गाथानो अर्थ छे, अने एनुं विशेष वर्णन निर्युक्तिकार पोते कहे छेः - परिषद, सूत्रम् ॥४२४॥
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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