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________________ P सूत्रम् ॥४२३॥ कर्मोनो नाश थतां मोक्ष थाय छे, ने ये गाथामां बताव्युं छे. नामनिष्पन्न निक्षेपामा 'शीतोष्णीय' अध्ययन छे माटे शीत उष्ण ब-13 आचा० न्नेना निक्षेपा कहे छे: नामं ठवणा सायं, दवे भावे य होइ नायव्वं । एमेव य उण्हस्सवि, चउविहो होइ निक्खेवोनि. गा.२००। ॥४२३॥ ___ नाम. स्थापना, द्रव्य अने भाव एम चार प्रकारे निक्षेपाछे. तेमां नाम स्थापना सुगमने छोडी द्रव्य निक्षेपो शोत अने उष्णनो कहे छे. 18 दव्वे सीयल दव्वे, दव्वुणहं चेव, उण्हदव्वं तु । भावे उ पुग्गलगुणो जीवस्स गुणो अणेगविहो ।२०१॥ व ज्ञ शरीर भव्य शरीर छोडी व्यतिरिक्तमां गुण गुणीना अभेदपणाथी द्रव्य शीत ठंडा गुणथी युक्त द्रव्य, अथवा शीतर्नु कारण जे द्रव्य ते द्रव्यना प्रधानपणाथी ते शीत द्रव्य छे, ते बरफ हिम करा विगेरे छे, एज प्रमाणे उष्णमां गरम पदार्थ लेवा. भावथी बे प्रकारे छे एटले पुद्गालाश्रयी, तथा जीवाश्रयी-छे, ते गाथाना बे पदमा बतावेल छे, तेमां पुद्गालाश्रयी ठंडो गुण गुणना प्रधानपणाने बताववारूपे छे, तेम भाव उष्णमां पण जाणवं. जीवने आश्रयी शीत अने उष्ण रुपवाळो अनेक प्रकारे गुण छे. जेमके औदयिक विगेरेज भायो छे. तेमां औदयिक ते कर्मना उदयथी प्रगट थयेल नारकी विगेरे जीवोने भवना आश्रयी पो तानी मेळे कषाय थाय छे ते उष्ण भाव जाणवो. अने औपशमिक ते सात प्रकृतिना उपशमथी उपशम सम्यक्त्व तथा विरति (चारित्र) 18 रूप ठंडो भाव छे. तथा क्षायिक भाव पण ठंडो छे. कारणके ते क्षायिक सम्यक्त्व तथा चारित्र रुपवालो छे. अथवा बधा कर्मनो दाह ते (क्षायिकभाव) सिवाय उत्पन्न यतो नथी. माटे ते उष्ण छे. तेज प्रमाणे विवक्षाथी बीजा पण चे से SHEESECRUAR - ॐ
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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