SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 195
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ RASHTRA 15) कहेता पण, मोह उत्पन्न थतां द्वेपी थाय; अने द्वेषी थइने शुं करे ते पण कहे छे:आचा० अवि य हणे अणाइयमाणे, इत्थंपि जाण सेयंति नत्थि, केयं पुरिसे कं च नए ? सूत्रम् एस वीरे पसंसिए, जे बद्धे पडियमोयए, उड्ढे अहं तिरियं दिसासु से सवओ सत्व ॥४१२॥ ॥४१२॥ परिन्नाचारी, न लिप्पई छण पएण वीरे से मेहावी अणुग्घायण खे यन्ने जे य बन्ध पमुक्ख मन्नेसी कुसले पण नो बद्धो नो मुक्के ॥ (सू० १०२) क्रोधायमान थयलो राजा वाचाथी अपमान करे; अने तेनुं गायुं न गावाथी वखते मारवा पण तैयार थाय; एटले, लाकडीचाबकाथी साधुने मारे कयु छे के:| 'तत्थे ब य निढवणं बंधण निध्छुभण कडगमद्दो वा । निविसयं व नरिंदो करेज संघपि सो कुद्धो ॥१॥ 18/ क्रोधायमान थयलो निष्ठापन करे; बंधन करे; देशनिकाल करे; सेनापासे मार मरावे; अथवा, पोतानां राज्यमा आवतां बंध करे अथवा संघने पण दुःख आपे; ते प्रमाणे, तचनिक (विगेरे नो) उपासक-नंदचळनी कथाथी एटले, बुद्धनी उत्पत्तिना कथानकथी भागवत मतनो भल्लिग्राहनां दृष्टांतथी रौद्रमतनो पेढालनो पुत्र सत्यकी उमाना दृष्टांतने सांभळवाथी द्वेपी थाय छे. (वीजा मतना गुणो न जोतां इर्णरूपे कथाओ जोडी काढेल छे, तेवी कथा कहेतां वीजा मतवालाने क्रोध थाय छे. माटे, वने त्यांमधी 5525136SECCASSA
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy