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________________ आचा० ॥३८०॥ परिग्रह कहे छेधर्मऊपकरणथी जेटलं वधारे उपकरण ले, ते परिग्रह छे. माटे वधारे मळतुं न ले, अथवा संयम उपकरणमां पण मूछों करवाथी परिग्रह छे. कडूंछे केः (तत्वार्थ 'भ. ८. सू.') मूर्छा परिग्रह छे, तेथी वधारे मळतुं छोडीने जोइतां लीधेलां ऊपकरणमां पण मूर्छा न करे. ॥३८॥ शंका-जे कंइ धर्मऊपकरण विगेरेनो परिग्रह छे, ते पण चित्तनी मलीनता (राग) शिवाय थतो नथी का छे के-पोताने उ-18 | पकार करनारमा राग थाय; तो उपघात करनार उपर द्वेष पण थाय; तेथी परिग्रह राखतां रागद्वेष नजीक आवे छे, अने नेनाथी कर्म बंध थाय छे, माटे तमो कहो छो के, धर्मऊपकरण परिग्रह नहीं; ते केवीरीते मानीए ! कह्यु छे के: "ममाहमिति चेष यावदभिमानदाहज्वरः । कृतान्त मुखमेव तावदिति न प्रशान्त्युन्नयः ॥ यशः 'खुख' पिपासितैरयमसावनोंत्तरैः, । परैरपसदः कुतोऽपि, कथमप्यपाकृष्यते ॥१॥ आ मारुं एवो ज्यां सुधी अभिमानरूप, दाहज्वर रहेलो छे, त्यांमुधी जमना मुखमां जवानुं छे तेम त्यां मुधी शांति पण नथी तेम उन्नति पण नथी. माटे जस अने सुखना वांच्छकोए परिणामे आ अनर्थ छे एम जाणे छे, तेथी ते उत्तम पुरुषोए आ ममताना दुर्गुण पण रीते गमे त्यांथी खेंची काढवो जोइए. . HEARSASAR ASHREESAE
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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