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________________ आचा० ॥३४९ ॥ उपभोगने माटे - धनने इच्छी तेवी तेवी क्रियामां वर्त्ते छे. एटले अवलगन. ( बीजानो आशरो लेवा) विगेरेनी क्रिया करे छे. तेमां | लाभांतराय कर्मना क्षय उपशममां जुदीजुदी जातनुं मळेलं अने वापरतां वचेलं साचववा महान उपकरण भेगां करे छे. अने कोइ पापीने तेवा लाभनो उदय न होय, तो धननी इच्छाए ते रंक मनुष्य समुद्र ओळंबे छे, पहाड चढे छे. खाण खोदे छे, गुफामां पैसे छे, पारानो रस बनावी तेना वडे सुवर्ण सिद्धि (कीमीयो) करवा चाहे छे. राजानो आश्रय ले छे, खेती करावे छे, आधी क्रियामां पोताने अने परने दुःख आपवा वडे पोताना सुखना माटे मेळवेलं धन पोते कष्ट करेलुं होय छतां कोइ वखत तेना पापना उदयथी तेना पीतराइओ तेमां भाग पडावे छे. अथवा दगाथी ले छे. चोरो चोरे छे. राजाओ दंडे छे. अथवा पोते राजना | भयथी जंगलमां नासी जाय छे. अथवा तेनुं जुनुं घर पडी जाय छे. अथवा अग्निथी वळतां धन नाश पामे छे. लुंटाइ जाय छे; आवां घणां कारणोथी अर्थ नाश पामवानो छे. एथी उपदेश करे छे के, हे शिष्य ! अर्थनो मेळवनारो बीजानां गळां रेसनारो पाप | करीने आज्ञानी जीव ते धनथी सुख भोगववाने बदले दुःख भोगवतां मुढ बनीने घेलो थाय छे। अने तेथी विवेक नाश थवाथी कार्य - अकार्यने मानतो नथी. तेज तेनी विरूपता छे. कां छे के "रागद्वेषभिभृतत्वा, त्कार्याकार्य पराङ्मुखः । एष मूढ इति ज्ञेयो, विपरीतविधायकः ॥१॥ रागद्वेषथी घेरावाथी कार्य अकार्यना विचारमां शून्य एवो विपरीत कार्य करनारो मूढ माणस जाणवो. आ प्रमाणे मूढपणाना अंधकारमां छवायाथी जेने आलोकना मार्गनुं ज्ञान नथी एवा सुखना अर्थिओ छतां दुःखने पामे छे. सूत्रम् ॥३४९ ॥
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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