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________________ ॥३४८॥ 15/ वामां कृतार्थ माने छे. तेथी आ प्रमाणे सर्व प्राणी सुखना जीवितना अभिलापी छे: अने संसारी-निर्वाह आरंभ विना नथी; अने आरंभ छे, ते आचा० निमाणीने उपघात करनार छे, अने प्राणीओने पोतानुं जीवित वधारे बहाल छे, तेथी वारंवार गुरुमहाराज उपदेश आपे छे के-द॥३४८॥ रेकने सर्वथा इन्द्रियोना विपय बहाला छे, अनेतेथी विपयोने ध्यानमा राखीने शुं करे छे ? ते कहे छे. चे पगवाळा दास दासी चार पगवाळा गाय घोडा विगेरे उपभोगमां लइने धननो संचय करीने मन, वचन, अने कायाथी करवू वरावयु, अने अनुमोदनावडे है पोतानां मनुष्य-जन्ममां जे कंइ जींदगी परमार्थमां गुजारवी जोइए; तेने वदले तेने आरंभमांएटले पापकर्ममां रोकीने व्यर्थ करे छे. ते वखते अर्थमां गृद्धथयलो पोते क्लेशने गणतो नथी. धनने रक्षण करवानो परिश्रम विचारतो नथी; तथा तेनी चंचळताने ध्यानमां | लेतो नथी, तेना नकामापणाने विसरे छे. (धनना अपायो भूलोने लाभज नजरे जुए छे, अने पापमां रक्त रहे छे.) का छे के-3 कृमिकुलचितं लालाक्लिन्नं विगन्धि जुगुप्सितं, निरुपमरसप्रीत्या खादन्नरास्थि निरामिषम् ॥ सरपतिमपि श्वा पार्श्वस्थं सशान्तिमीक्षते, न हि गण यति क्षुद्रो लोकः प्ररिग्रहफल्गुताम् ॥१॥ कृमिना समूहथी व्याप्त अने लाळथी भरेल्लं दुर्गधवाल्छं निंदनीक एबुं मांस विनानुं हाडकुं मोढामां ममरावतो अधिक स्वाद तेमां मानतो कुतरो-पासे उभेला इन्द्रने पण शंकाथी जुए छे. (के रखेने मारू हाडकुं इन्द्र लइ न जाय.) आ उपरथी निश्चय एम जणाय 5छे के क्षद्र जंतु छे. ते पोतानी संघरेली बस्तुनी असारना जाणतो नथी. ते पैसाने शा माटे चाहे छे, ते कहे छे. भोजनने माटे CRECROREGARMA
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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