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ता करुणाए लोएण बालिओ विद्धिमुवगओ एसो । अह लजंतो नयरं मोत्तृणं जत्थ केणावि || ४ || नामं पिन याणिजइ सालिग्गामे ठिओ तहिं गंतुं । जं जं कुणइ कया विहु कहमवि वाणिज्जवसायं |५| सो सो जाय विलो तत्तो उयरं पि भरिउमसमत्यो । दूरं विसन्नहियओ सो पासंडीण पासम्म |६| वबइ कहइ य वालत्तणाउ आरम्भ अत्तणो दुक्खं । तेऽवि य भणंति सत्र्वे जह धम्मविवज्जिया जीवा ॥७॥ किं भद्द तं दुहं जं लहंति न पुरा सयं विहिपावा । ता सयलसोक्खनिलयं धम्मं चिय कुणसु सुहकंखी धम्मं च दाणहोमाइएहिं साहंति तस्स ते तत्तो । एवं परिव्भमंतो कयाइ सो साहुमूलम्मि ॥९॥ पत्तो निसुणइ धम्मं केणइ सुहकम्मपरिणइव सेण । तं जुत्तिसंगयं मन्निऊण काउं समादत्तो ॥ १०॥ भागेण चुंटिकणं मिलए कुसुमाई नेइ जिणभवणे । पूयइ वंदइ बिंबे कुणइ य आरतियाईयं ॥ ११॥ धम्मं अन्नं पितकलेससज्यं समायरइ सव्वं । कमसो परिणयधम्मो वडूढंतसुहेकपरिणामो | १२ | आसंसाए विरहिओ निरूसुओ कुणइ पोसहाईयं । जं किंचि वि ववसायं कुणमाणो तो भरइ उयरं | १३ | नामं च तस्स व विहियं लोएण दुग्गओ त्ति तओ । कइया विबहुयसंचियकुसलो घेत्तूण मुग्गाणं ॥ पडियं एक सीसेण वच्चए पुरवरम्मि अयलउरे । तस्स बहिं तरुमूले वीसममाणेण तेणेक्को ॥ १५ ॥ दण सिद्धपुत्तो पोत्थियहत्थो परेण विणएण | पुट्ठो किमिमीए पोत्थियाए लिहियं ति ? सो आह ॥ १६ ॥
॥ ४३९ ॥