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________________ II पुच्छइ कुमरो भयवं! तुन्भे वञ्चिहिह कं इओ वसहिं ? । तो गोयमेण भणियं बाहिं चिट्ठइ समोसरिओ । अम्हं धम्मायरिओ वीरजिणो तस्स चरणमूलम्मि | वच्चिस्सामो अम्हे इय भणिऊणं गओ तत्थ ॥१२॥ अइमुत्तयकुमरो ऽवि हु वच्चइ पच्छा जिणस्स पासम्मि | भयवं पि तयणुरूवं भवमहणिं देसणं कुणइ॥ का अइमुत्तओ वि उग्गं काउं जम्मंतरम्नि पव्वलं । गंतूण देवलोयं चइऊण इहं समुप्पन्नो ॥१४॥ का पुबि पि बहुयकम्मे खविए लहुकम्मयाइ तो इण्हि । सोउं जिणस्स वयणं तकखणमुवलद्धसम्मत्तो ।१५।। पभणइ तुम्ह सहत्येण दिक्खियं अप्पयंअहं भयवं!। इच्छामि जिणोऽवि तओ पभणइ मा कुणह पडिबंधं। , तो परमं संवेयं समुब्वहंतो पिऊणि अइमुत्तो । पभणइ मुंचह अम्मो ! दिक्खं गिण्हामि जिणपासे ।१७। । All बालोऽसि तुमं पुत्तय ! सुकुमारो पवरसोक्खदुल्ललिओ । केवलकट्ठाणुट्ठाणनिम्मियं तो वयं दुकरं ॥१८॥ इय भणियम्मि पिऊहिं अइमुत्तो भणइ सचमेयं ति । उच्छलिए पुण विरिए अणंतविरियस्साजीवस्स।१९। विजइन दुक्करं तिहुयणेऽवि गेहे य संपलितम्मि । का बालवुडढपमहाण नीहरमाणाण किर चिंता? ॥२०॥ जरमरणरोयसोयग्गिसंपलित्तो य एस भववासो | तो नीहरमाणमओ को संभइ किर हिओ संतो? ॥२१॥ | इच्चाइजुत्तिसंगयगिराहिं पडिबोहिऊण पियराइं । अइमुत्तएण गहिया दिक्खा जिणवीरपासम्मि ॥२२॥ एफारस अंगाई तत्तो सो पढइ थेवदियहेहिं । थेराण सन्निगासे अहऽन्नया एइ घणसमओ ॥२३॥ ॥४२३ ॥
SR No.010801
Book TitleBhav Bhavna Prakaranam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubodhchandra Nanalal Shah
PublisherGangabai Jain Charitable Trust Mumbai
Publication Year1986
Total Pages516
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
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