SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 385
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भावना प्रकरण मानकषाये उज्झितकुमारकथा कीलंतोय कुमारे सव्वे वि अहिक्खिवेइ दप्पेण । उत्ताणियहियओ नहनिवदिट्टी य परिभमइ ॥७॥ पेच्छइ भुवणं पि तणं वच्चइ न कयाइ पिउसमीवेऽपि । पणमइ न देवयाण वि नामं पिहन सहइ गुरूणं ॥८॥ अह अन्नया निवेणं समप्पिओ सो कलाण गहणट्ठा । अज्झावयस्स कहमवि तत्तो तं भणइ सो एवं ॥ रे रंक! ममाहिंतो किं अब्भहियं तुम मुणसि? जेण । ठविऊण ममं नीयासणम्मि वेत्तासणे गरुए॥ उवविससि अप्पणा तो कहेइ अज्झावओ नरिंदस्स। सव्वं पि तस्स चरियं राया वि हु भणइ तं एवं ॥११॥ मज्झ सुओ त्ति न तुमए संकेयव्वं बला विचड्डे । पाढयचो एसो सिरम्मि दंडेण निहणे ॥१२॥ अज्यावरण एवं कहियं कुमरस्स जह इमं राया । पभणइ तो कुमरोऽवि हु दप्पेणं पभणए एवं ॥१३॥ किं माणुसमिह राया ? कोऽसि तुम रंक! मज्झ सिक्खवणे ? । अज्झावएण तत्तो वहिओ सो कंवघाएण ॥१४॥ तो तेण लउडियाएण तहा सिरे ताडिओ उवज्झाओ। जह चिंगियाउ देतो पडिओ धरणीइ मुच्छाए ॥ एसो य वइयरो नरवरेण सव्वोऽवि अवगओ तत्तो । निविस्सओ आणत्तो कुमरो नीहरइ नयराओ॥ -23 ॥३५४॥
SR No.010801
Book TitleBhav Bhavna Prakaranam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubodhchandra Nanalal Shah
PublisherGangabai Jain Charitable Trust Mumbai
Publication Year1986
Total Pages516
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy