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________________ वृद्धत्वे पुत्रवधूमि रपि जिनदत्तपराभवः भव. अचंतदुही एसो सयणाणं तो कहेइ नियदुक्खं । पुत्ताऽवि हु सयणाणं कहंति तव्वइयरं सव्वं ॥२१॥ भावना तो सयणेहि वि एसो उवेहिओ परिकहेइ मित्तस्स । तेण विभणियं एयं कहियं पुदिव पि तुज्झ मए॥ प्रकरणे ता इहि पिउवायं काहामि अहं करेसि जइ भणियं । होही सरीरसुत्थं न उणो धम्मव्वयाईयं ॥२३॥ तो जिणदत्तो पभणइ एयं पि करेह ताव मह इहि । अह सिक्खं दाऊणं नियगेहं वच्चए विमलो ॥२४ ठिकरियाओ काउंटंकागाराउ नउलयं भरि । जिणदत्तस्स समप्पइ सिक्खवइ पुणो वि सव्वं पि॥ है तो जा घरगोजारीए कोणए तुट्टमंचए पडिओ । चिट्ठइ कासंतो ताव केणई तत्थ कजेण ॥२६॥ जेहा सुण्हा पत्ता तो भणिया तेण जह इमं भद्दे ! । टंकाण सहस्सं नउलयम्मि चिट्टेइ 'मह पासे ॥२७॥ निहणेऊणं कोणे एत्थ धरिस्सामि ता तुमं चेव । गिण्हेज मह परोक्खे पच्छिमकालो जमम्हाणं ॥२८॥ तो परिचिंतइ एसा संभवइ सकिंचणत्तणं वुड्ढे । ता होही आभरणं कणएण इमेण मह सव्वं ॥२९॥ 6 इय चिंतिऊण विणयं पुब्बिल्लाओ करेइ सविसेसं । भोयणतंघोलाई सव्वं पि हु देइ एयस्स ॥३०॥ ता बीयवहू चिंतइ वइ एवं अपासगा न इमा । इय चिंतिउं इमा वि हु वच्चइ ससुरस्स पासम्मि ॥ तीसेवि तह चिय सो कहेइ कुवइ इमा वि तह विणयं । एवं चिय वत्तव्वं तइयचउत्थाण वि बहणं॥ अहमहमिगया तत्तो विणयं एयाण तह कुणंतीणं । अइसुत्थो संजाओ जिणदत्तो गमइ दियहाई॥३३॥ ॥ २६२॥
SR No.010801
Book TitleBhav Bhavna Prakaranam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubodhchandra Nanalal Shah
PublisherGangabai Jain Charitable Trust Mumbai
Publication Year1986
Total Pages516
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
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