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________________ भव नवलक्खाण वि मज्झे जायइ एगस्स दुण्ह व समत्ती । सेसा पुण एमेव य विलयं वच्चंति तत्थेव॥ जननी प्रारणे सुयमाणीए माऊइ सुयइ जागरइ जागरंतीए। सुहियाइ हवइ सुहिओ दुहियाए दुक्खिओ गब्भो। गर्भस्य दर कइया वि हु उत्ताणो कइया वि हु होइ एगपासेण । कइया वि अंबखजो जणणीचेट्ठाणुसारेण ॥ स्थितिः इय चउपासो बडो गम्भे संवसइ दुखिओ जीवो। परमतिमिसंधयारे अमेज्झकोत्थलयमज्झे व्व ॥ सूईहिं अग्गिवन्नाहि, भिजमाणस्स जंतुणो । जारिसं जायए दुक्खं, गन्भे अद्वगुणं तओ ॥२६॥ पित्तवसमंससोणियसुक्कद्विपुरीसमुत्तमज्झम्मि । असुइम्मि किमि व्व ठिओ सि जीव ! गम्भम्मि निरयसमे ॥२६॥ 5 इय कोइ पावकारी बारस संवच्छराई गम्भंमि । उक्कोसेणं चिट्ठइ असुइप्पभवे असुइम्मि ॥२७०॥ तत्तो पाएहिं सिरेण वा वि सम्मं विणिग्गमो तस्स। तिरियं णिग्गच्छंतो विणिवायं पावए जीवो ॥२७१॥ ॥२१ ॥
SR No.010801
Book TitleBhav Bhavna Prakaranam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubodhchandra Nanalal Shah
PublisherGangabai Jain Charitable Trust Mumbai
Publication Year1986
Total Pages516
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
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