________________
Ke भाग न भवसीति भावः ॥ कः पुनरसो मेघकुमारः ? कथं यूथाधिपतेस्तस्य दुःखमुत्पन्नमिति, ?
उच्यतेमगहाजणवयमझे रायगिहं नाम पुरवरं आसि । जत्थ सयथो वि सया संखाईओ जणो वसइ ॥१॥ पडिहार चिय सेवंति जत्थ निचं परस्स दाराई तह लोयाण पओसो जत्थ अकजे न अन्नोऽन्नं ॥२॥ तत्थ य सेणियनामा नरनाहो जो दढोऽवि सम्मत्ते । मिच्छं विप्पडिवन्नो सिरिवीरजिणंदसमएसु ॥३॥
तस्स य रन्नो भजा, धारिणीनामा इमा य कइया वि ।
पेच्छइ पच्छिमरयणीइ, सियकरिं अइगयं वयणे ॥४॥ नेमित्तिएहिं रन्नो कहिओ तो पवरपुत्तजम्मो त्ति । अह धारिणीइ गम्भो परिवड्ढइ तहिणारद्धं ॥५॥ तो तइयगम्मि मासे अकालमेहेसु दोहलो जाओ। चिंतड़ जड़ा अकाले उन्नयमेहेसु सव्वत्तो ॥३॥ अणुगम्मंती सेणियरन्ना तह करिवरम्मि आरूढा । सिरि धरियधवलछत्ता जइ रायगिहे परिभमामि ॥ तो पुज्जइ दोहलओ मज्झ इमं अज दुग्घडं मन्ने । इय चिंताए तीसे पइदियहं खिजए अंगं ॥८॥ अह नरवरेण गाढं पुट्ठा परिकहइ दोहलं एसा । अभयकुमारस्स निवोऽवि साहए सोऽवि उवउत्तो ॥९॥ पोसहसालाए ठिओ अट्ठमभत्तेण पुव्वसंगइयं । सोहम्मवासिदेवं आराहइ तो इमो नीसे॥१०॥