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________________ wwwnwir manamawwanimm ॐ ह्री परामर्शऋद्धिसिद्ध म्यो नम मध्यं । विषम जहर मिला भोजन कर, लेत ग्रासहि तिस शक्ती हरै। ते महामुनि जग सुखदाय जू, हम नमें तिन शिवपद पाय जू ॥२३॥ ॐ ह्री पाशोविषऋद्धिसिद्धेभ्यो नम अध्यं । जो महाविष प्रति परचण्ड हो, दृष्टि करि तिन कीने खण्ड हो। सो यतीश्वर कर्म विडारकै, भये सिद्ध नमू उर धारकै ॥२४॥ ___ॐ ह्री दृष्टिविषविषऋद्धिसिद्ध भ्यो नम अध्यं ।। अनशनादिक नित प्रति साधना, मरणकाल तई न विराधना। उग्र तप करि वसुविधि नासतै, हम नमें शिवलोक प्रकाशते ॥२॥ ॐ ह्री उग्रनपऋद्धिसिद्ध भ्यो नम अध्यं । बढति नित प्रति सहज प्रभावना, उग्र तप करि क्लेश न पावना। । दीप्ति तप करि कर्म जरायक, भये सिद्ध नमू सिर नायकै ॥२६॥ प्रथम ॐ ह्री दीप्ततपऋद्धिसिद्ध भ्यो नम अध्यं ।' १ अन्तराय भये उत्सव बढे, बाल चन्द्र समान कला चढे। । वृद्ध तपकी ऋद्धि लहै यती, भये सिद्ध नमत सुख हो अती ॥२७॥
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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