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________________ ॐ ह्री प्रष्टागनिमित्त ऋद्धि सिद्ध ेभ्यो नम अध्यं । सिद्ध० बहु विधि अणिमादिक ऋद्धि जू, तप प्रभाव भई तिन सिद्धिजू । वि० निष्प्रयोजन निजपद लीन है, नमूं सिद्ध भये स्वाधीन है ॥ १८ ॥ ॐ ह्री विवऋद्धिसिद्धेभ्यो नम अध्यं । ४२ भूमि जल जंतु जिय ही ना हरै, नमूं ते मुनि शिव, कामिनि वरं । नेक नहीं बाधा परिहार हो, नमूं सिद्ध सभी सुखकार हो ॥१६॥ ॐ ह्री विज्जाहरणऋद्धि सिद्धेभ्यो नमः अयं । जंघपर दो हाथ लगावहीं, अन्तरीक्ष पवनवत जावहीं। पाय ऋद्धि महामुनि चारणी, यथायोग्य विशुद्ध विहारी ॥२०॥ ॐ ह्री चारणऋद्धि सिद्ध ेभ्यो नम श्रध्यं । । खग समान चलै आकाश में, लीन नित निज धर्म प्रकाश मे । शुद्ध चारण करि निज सिद्धता, पाइयो हम नमन करे यथा ॥२१॥ ॐ ह्री आकाशगामिनीऋद्धिसिद्धेभ्यो नम अध्यं । वादविद्या फुरत प्रमानही, वज्रसम परमतगिरि हानही । सब कुपक्षी दोष प्रगट करें, स्यादवाद महादुतिको धरे ॥ २२॥ प्रथम पूजा ४२
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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