SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 36
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सिव वि० वर्ग पवर्ग सुभाग, करूं प्रारती अर्घ ले। सब विधि प्रारति त्याग, वायव दिशि पूजा करों॥१२॥ ___ ॐ ह्री अहं प फ ब भ म अनाहतपराक्रमाय सिद्धाधिपतये वायव्यदिशि मध्य नि० । वर्ण यवर्गी सार, दर्व अर्घ वसु द्रव्य करि। भाव अर्घ उर धार, उत्तर दिशि पूजा करों॥१३॥ ॐ ह्री ग्रह य र ल व अनाहतपराक्रमाय मिद्धाधिपतये उत्तरदिशि अध्यं नि । शेष वर्ण चउ अन्त, उत्तम अर्घ बनाइकें। नशे कर्म वसु भंत, पूजो हो ईशान दिशि ॥१४॥ ॐ ह्री ग्रह श ष स ह अनाहतपराक्रमाय सिद्धाधिपतये ईशानदिशि अध्यं नि० । स्थापना ( छप्पय छन्द ) ऊरध अधो सरेफ बिंदु हंकार विराजे, अकारादि स्वर लिप्त करिणका अन्त सु छाजे। वर्गनि पूरित वसुदल अम्बुज तत्त्व संधि धर, अग्रभागमें मंत्र अनाहत सोहत अतिवर ॥ प्रथम
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy