SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 35
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ rwaru ___ॐ ह्री प्रा इ ई उ ऊ ऋ ऋ ल ल ए ऐ ओ औ अ अ. अनाहतपराकमाय सिद्धाधिपतये । सिद्ध नम , पूर्व दिशि अयं निर्वपामीति स्वाहा । वि. सोरठाः-वर्ण कवर्ग महान, अष्ट पूर्वविधि अर्घ ले। भक्ति भाव उर ठान, पूजो हो आग्नेय दिशि ॥८॥ ॐ ह्री अहं क ख ग घ ड अनाहतपराक्रमाय सिद्धाधिपतये अग्निदिशि अध्यं नि० स्वाहा वर्ण चवर्गप्रसिद्ध, वसुविधि अर्घ उतारिके। मिलि है वसुविधि रिद्धि, दक्षिण दिशि पूजा करौ॥६॥ ॐ ह्री अहं च छ ज झ ञा अनाहतपराक्रमाय सिद्धाधिपतये दक्षिणदिशि अध्यं नि०। वर्ण टवर्ग प्रशस्त, जलफलादि शुभ अर्घ ले। पाऊँ सब विधि स्वस्ति, नैऋत्य दिशि अर्चा करो॥१०॥ । ॐ ह्री प्रहं ट ठ ड ढ ण अनाहतपराक्रमाय सिद्धाधिपतये नैऋत्यदिशि अध्यं नि० । वर्ण तवर्ग मनोग, यथायोग्य कर अर्घ धरि । मिलि है सब शुभ योग, पूजन करि पश्चिम दिशा ॥११॥ ॐ ह्री महँ त थ द ध न अनाहतपराक्रमाय सिद्धाधिपतये पश्चिमदिशि अध्यं नि० । мммммммммм प्रथम
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy