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________________ धर्म अर्थ अरु मोक्षके, हो दाता भगवान । सिद्ध० मै नित प्रति पायन परू, देहु परम कल्याण ॥ ह्रीमहं विभगीशायनम अध्य ३७४६ १०४ गिरा कहै जिन वचनको, तिसका अन्त सु धर्म। मोक्ष करै भविजननको, नाशै मिथ्या भर्म ॥ ही अह गिरापतये नम प्रय। ३७५॥ जाकी सीमा मोक्ष है, पुरण सुख स्थान । शरणागत को सिद्ध है,नमसिद्ध धरि ध्यान ॥ॐ ह्रींप्रहं सिद्धागायनम प्रणं .३७६। नय प्रमारणसो सिद्ध है, तुम वारणी रवि सार । मिथ्या तिमिर निवारक, करै भव्य जन पार ॥ह्रीमह सिद्रवार मयायनम प्रध्य। । निज पुरुषारथ साधक, सिद्ध भये सुखकार । । मन वच तन करि मैं नमू,करो जगतसै पार॥ ह्रींअहं मिद्धाय गम अध्यं ॥३७॥ है सिद्ध करै निज अर्थको, तुम शासन हितकार। प्रष्टम भविजन मान सरदहै, करै कर्म रज छार ॥ॐह्रींग्रहं सिद्धशामनाय नम.मj 38 पूजा तीन लोकमे सिद्ध है, तुम प्रसिद्ध सिद्धान्त । अनेकात परकाश कर, नाशे मिथ्या ध्वांत ही पई नगदपमिद्धमिद्धातायाम, mmam
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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