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________________ वि० पाप तीर्थ औरन प्रति, सर्व तीर्थ करतार । सिद्धः उत्तम शिवपुर पहुँचना,यही विशेषरण सार ॥ ह्रीग्रहपरमोत्तमतीर्थकुतायनम प्रय दृष्टा लोकालोकके, रेखा हस्त समान। युगपत सबको देखिये, कियो भर्मतम हान ।ॐह्री प्रहं दृष्टाय नमःअध्यं ॥३६८॥ जिनवारणीके रसिक हो, तासो रति दिन रैन। ह्रीं प्रहवाग्मीश्वरायनम अर्घ्य ३६६। जो संसार-समुद्रसे, पार करत सो धर्म। तुम उपदेश्या धर्मक, नमत मिटै भव भर्म ॥ ही अहं धर्मशासनायनम.अयं ३:. धर्म रूप उपदेश है, भवि जीवन हितकार । मै बंदू तिनको सदा, करौ भवार्णव पार ॥हीग्रह धर्मदेशकाय नमःप्रयं ।३७१। सब विद्याके ईश हो, पूरन ज्ञान सु जान । तिनको बंदूभावसे, पाऊं ज्ञान महान ॥ॐ ह्री पहं वागीश्वराय नम प्रध्य ॥३७॥ पूजा सुमति नार भरतार हो, कुमति कुसौत विडार । मै पूजू ह भावसों, पाऊं सुमती सार ॥ॐ ह्रीं प्रहं पीनाथाय नम प्रय ।३७३ । अष्टम
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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