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________________ जाके गर्भागमनत, पहले उतसव ठान । दिव्य नारि मंगल सहित, पूजत श्रीभगवान ॥ॐ ह्रीं महंगर्मोत्मवसहिताय नम अयं । ' वि० नित नित आनन्द उरधरै, सुर सुरीय हरषात । मंगल साज समाज सब, उपजावै दिन रात ॥ ही अहं नित्योपनागेपचितायनम केवलज्ञान सुलक्षमी, धरत महा विस्तार । चरणकमल सुर मुनि जजै,हमपूजतहितधार ॥ॐही पह पद्मप्रभवे नम अय।२२६।। तिहुँविध विधि मल धोयकर, उज्ज्वल निर्मल होय । शिवालयमें वसत है, शुद्ध सिद्ध है सोय॥ ॐ ह्री अहं निस्कलाय नम अध्यं ।। २३ ०।। असंख्यात परदेशमे, अन्य प्रदेश न होय । स्वयं स्वभाव स्वजात हैं, मैं प्रणमामी सोय ॥ ह्रींग्रहस्वयस्व मावायनमः प्रध्य २३११ पूज्य यज्ञ आराधना, जो कुछ भक्ति प्रमाण । तुम ही सबके मूल हो, नमत अमंगल हान ॥ॐही प्रहमीयजन्मने नम अध्य।।२३२॥ सूर्य सुमेरु समान हो, या सुरतरुकी ठौर । १२८८ महा पुन्यकी राशि हो, सिद्ध न कर जोर ॥ही अहं पुण्यागाय नम प्रय।।२३।। अष्टम
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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