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________________ ! देखो लोकालोकको, हस्त रेखको सार । सिद्ध इत्यादिक गुरण तुम विषै, दीखै उदय अपार ॥हीमदर्शनविधि गुणोदयाय नम वि. छायक समकितको धरै, सौधर्मादिक इन्द्र । 01 तुम पूजन परभावतें,अन्तिम होय जिनेन्द्र॥ॐही पहं सुरामितागनम मध्य ।२२१ ॥ निर्विकल्प शुभ चिह्न है, वीतराग सो होय । । सो तुम पायो सहजही, नमू जोर कर दोय॥ई हो प्रहमुग्यदात्मनेनम पत्र्या२२२।। । स्वर्ग प्रादि सुख थानके, हो परकाशन हार । दीप्त रूप बलवान है, तुम मारग सुखकार ॥ ही प्रहं दियौतम नम.मयं ।।२२३।। । गर्भ कल्याणक के विषै, तुम माता सुखकार । षट् कुमारिका सेवती, पावें भवदधि पार॥ह्रींपर्ह गोगवितमातृकायनम प्रय। अति उत्तम तुम गर्भ है, भवदुख जन्म निवार । । रत्नराशि दिवलोकतें, वर्षे मूसलधार ॥ॐ ह्री पह रत्नगर्माय नम मयं ।।२२६॥ प्रप्टम । सुर शोधनतें गर्भमें, दर्पण सम प्राकार । ।यों पवित्र तुम गर्भ है, पावै शिवसुख सार॥ ही प्रहं गर्माय नमःप्रयं ॥१२६।। पूजा २८७
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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