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________________ - unnurna राग नहीं थुतिकारसों, निंदकसो नहीं द्वेष । सिद्ध सम मुखिया प्रानंद-घन, बंदू सिद्ध हमेश॥ ह्रींमह वीतरागाय नम प्रध्यं ।।८.15 वि० क्षुधा वेदनी नाशकर, स्व-सुख भुजनहार। २६७ ४ निजानन्द सतुष्ट है, बंदू भाव विचार ॥ ॐ ह्री अहं अक्षुधाय नम प्रध्यं ॥१॥ एक दृष्टि सबको लखें, इष्ट अनिष्ट न कोय । द्वेष अंश व्यापै नहीं, सिद्ध कहावत सोय॥ॐ ह्रीं ग्रह अद्वैपाय नमःप्रधं ॥२॥ भवसागर के तीर है, शिवपुरके है राहि। मिथ्यातमहर सूर्य है, मै बंदूंहूँ ताहि ॥ॐ ह्री अहं निर्मोदय नम अध्यं ।।८३|| जगजनमें यह दोष है, सुखीदुखी बहु भेव । ते सब दोष निवारियो, उत्तम हो स्वयमेव ॥ॐ ह्री अहं निर्दोपाय नम अयं ।। जनम मरण यह रोग है, तिनको कठिन इलाज। परमौषध यह रोगकी, बंदू मेटन काज ॥ ॐ ह्रीं अहं अगदाय नम अयं ॥८॥ पूजा राग कहो ममता कहो, मोह कर्म सो होय।। सो निज मोह विनाशियो, नमूसिद्धहै सोय ॥ ॐह्रीअर्हनिर्ममत्वाय नम अध्या८६।। अष्टम
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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