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________________ । इन्द्रादिक नित ध्यावते, तुम सम और न कोय। मिदा तीन लोक चहामरिण, नम सिखसागतोय Rr2414 वि० निजानन्द पदको लहो, यविरोधी मल नाम। समकितविनतिलोकमें, और नहींमागम ।। , t. 11: ६ जगत शत्र को जीतिके, कल्पित जिन कहलाय। मोहशत्रजीतेर जिन,उत्तम सिन गाय : ५. .. ? ...1111 द्रव्य भाव दोनों नहीं, उत्तम शिवसालीना मनवचतनकरिमन,निज ममभाव जुम्तीन 1.1..........! चार संघ नायक प्रभू, शिवमग सुलभ कराय। तारणतरण जहान के. मैं बंदु शिवराय |stat.., स्वयं बद्ध शिवमार्ग में, ग्राप नले अनिवार। भविजन अग्रेश्वर भये चंदू भक्ति विचार Metraft's 1 17th atta शिवमारगके चिह्न हो, सुवसागरको पाल । शिवपुरके तुम हो धनी, धर्म नगर प्रतिपालsatertaint, ar ॥ विधा
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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