SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 293
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सिट सर्व-व्यापि परमातमा, सर्व पूज्य विख्यात । श्रीजिनदेवनमूत्रिविध, सर्व पाप नशि जात ॥ॐ ह्रीं पहं जिनदेवाय नम अध्यं ॥२३॥ २५६ , श्रीजिनेश जिनराज हो, निज स्वभाव अनिवार । । पर निमित्तविनशै सकल, बंदू शिवसुखकार ॥ ह्री अहं जिनेश्वराय नम अध्या२४। परम धर्म दातार हो, तीन लोक सुखदाय । । तीनलोक पालक महा, मै बंदू शिवराय ॥ ॐ ह्रीं अहं जिनपालकाय नम अध्यं ।२५ ॥ । गणधरादि सेवत महा, तुम आज्ञा शिर धार । अधिकाधिकजिनपदलहो,न करो भवपार ॐ ह्री प्रहं जिनाधिराजायनम प्रय॑ २४ । परम धर्म उपदेश करि, प्रकटायो शिवराय । श्रीजिन निज़ आनंद मै, वर्ते बंदूताय ॥ॐ ह्री अहं जिनशामनेशाय नम अर्ध्य २७ , पूरण पद पावत निपुण, सब देवनके देव ।। अष्टम #पजनित भावसों, पाऊं शिव स्वयमेव ॥ॐ ह्री प्रहजिनदेवाधिदेवायनम अy २० । पूजा तीन लोक विख्यात हैं, तारण तरण जिहाज । २५६ तुमसम देवन और है, तुम सबके शिरताज ॥ॐ ह्री अहंजिनाद्विनीयायनम.अयं ।२६४ nnnnwww
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy